बचपन में कन्हैया लाल नन्दन जी की एक कहानी पढी थी, जो कुछ इस तरह थीः
शहर में एक सड़क के किनारे एक मज़दूर महिला पत्थर तोड रही थी. अचानक वहां कुछ लोगों की भीड़ इकट्टी हो गयी और ज़ोर ज़ोर से से बोलने लगी “ देखो औरत पत्थर तोड़ रही है!... देखो औरत पत्थर तोड़ रही है! ”
वह औरत एकदम सकपका गयी और उठ कर चल दी. भीड़ उसके पीछे पीछे चलने लगी और अब बोल रही थी कि देखो! औरत जा रही है... देखो! औरत जा रही है...औरत भागने लगी और एक गली में बने अपने घर में घुस गयी....भीड़ गली में आ गयी और उस औरत के घर के सामने खड़े होकर वस्तुत: चीखने लगी, देखो! औरत घर में घुस गयी... देखो औरत घर में घुस गयी... औरत कमजोर दिल की थी.... उसने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली....अगले दिन दरवाज़ा तोड़ा गया तो यह हादसा सबके सामने था.
भीड़ अब खुसर पुसर कर रही थी...देखो औरत ने आत्महत्या कर ली.. ...देखो औरत ने आत्महत्या कर ली....
इसके बाद भीड़ अगले शिकार पर निकल गयी..
यह कहानी क्या आपको जानी पहचानी नहीं लगती? भीड़ को आज के इलेक्ट्रोनिक मीडिया से बदल दीजिये और देखिये यह गन्दा खेल आज भी जोर शोर से चालू है..
माओवादी हमले में मारे जवानों की खबर को भूल कर सानिया-शोहिब की शादी के पीछे पड़ गये. मीडिया की तब बहुत छीछालेदर हुई थी. परंतु टी.आर.पी. के भूखे भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया को न जाने किसने समझा दिया है कि अगर राजश्री प्रोडक्शन शादी की फिल्में बनाकर नोट कमा सकता है, तो वो क्यों नहीं.
अब देखिये न! धोनी की शादी में अपनी कैसी गत बना रहा था यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया. धोनी समझदार है. उसे पता था कि यदि शादी की खबर इस अपरिपक्व और बाज़ारु मीड़िया को पहले से बताई गयी तो यह कुछ न कुछ बखेड़ा खड़ा कर देगा और अपना साबुन तैल अलग से बेचेगा. लानत है! कि खबर हर कीमत पर खोजने वाला तुर्रम खाँ मीडिया चैनलों को पता ही तब चला जब धोनी की सगाई हो चुकी थी...फिर खबर आई कि शादी अक्टूबर में होगी. लेकिन रात होते होते पता चला कि शादी अगले दिन होने वाली है.
धोनी ने मीडिया को विवाहस्थल के अन्दर घुसने ही नहीं दिया, तो भी ये लोग बेशर्मी से अपना और देश का समय बरबाद करते हुए दिखाते रहे...कभी शादी में जाने वाली घोड़ी को, कभी घोड़ीवाले को, स्टूडियो में बैठे भाड़े के ज्योतिषियों को, एक चैनेल वाले तो भाड़े की दुल्हन भी पकड़ लाए कि उत्तरांचल की दुल्हन के लिबास में धोनी की दुलहन ऐसी लगेगी. देहरादून के उस होटल से जब धोनी अपनी नवविवहिता के साथ उड़न छू हो गया तब भाई लोग बेवकूफों की तरह होटल में घुस गए और बताने लगे कि यह देखिये यहाँ धोनी की शादी हुई थी, इनसे मिलिए ये हैं होटल के वेटर...जी हाँ! हमारे दर्शकों को बताइये क्या हुआ था?
कितना अभद्र था, जब IBN7 नाम के एक बाज़ारु चैनल नें यह खबर चलाई - “इधर शादी उधर तलाक” लेकिन कार्यक्रम देखने के दौरान यह पता चला कि तलाक से इन मूर्खों का मतलब उन लोगों से था, जिन्हें शादी में नहीं बुलाया गया था. धोनी की खबरों की कमाई खाने वालों की, यह शर्मनाक नमकहरामी थी !
यह सूरत है इस देश के चौथे खम्भे की. इनका काम था सत्ता और सत्ता तंत्र पर पैनी नज़र रखना, ताकि देश की व्यवस्था का कोई भी ज़िम्मेवार व्यक्ति या संस्थान शोषण न कर सके. परंतु अब लगता है कि बाड़ ही खेत को खा गयी. देश की एक मशहूर महिला टेलीविज़न पत्रकार और अंग्रेजी के एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र के मुख्य सम्पादक के द्वारा किसी खास व्यक्ति को मंत्री पद दिलाने की कोशिशों की बातें भी चर्चा में हैं. यदि इस धुँए के पीछे लगी आग सही है, तो पत्रकारों का दलालों की इस भूमिका में होना, राम गोपाल वर्मा की फिल्म “रण” में अमिताभ बच्चन के उस डायलॉग को सही ठहराता है कि पैसे के लिये मीडिया ने सत्त्ता से हाथ मिला लिया है... जो उंगली बेईमानों पर उठनी चाहिये थी, उसने उन लोगों से हाथ मिला लिया.
सेलेब्रिटीज़ की शादियों से ईतर, समूचा भारत तरस रहा है कि इंडिया के यह टेलीविज़न पत्रकार कभी उसकी भी खबर लेने आयें. कभी देखा है आपने कि महंगाई और बदहाली से हलकान किसी गाँव या शहर में जाकर इन्होंने आम लोगों से उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही हो? अब इन्हें ये समझाने की ज़रूरत तो है नहीं कि बड़े शहरों के अलावा भी देश के बाक़ी हिस्से में लोग रहते हैं. लेकिन जो जागते हुए भी सोने का नाटक कर रहा हो उसे कौन जगा सकता है!
चकाचौंध से भरे इंडिया का प्रतिनिधित्व करते टेलीविज़न जगत के यह पत्रकार, बॉलीवुड, क्रिकेट और फूहड़ हास्य से परे शायद किसी और दुनिया को जानते ही नहीं.
क्या नक़ाबपोशों की इस भीड़ में कोई सच्चा पत्रकार नहीं बचा!! और अगर कुछ अच्छे लोग इनमें अभी भी बचें हैं तो वो एक्सपोज़ क्यों नहीं करते इस बेशर्म खेल को? कैसे चुपचाप सह सकते हैं वो यह सब? एक समानान्तर और स्तरीय बीबीसी जैसा मीडिया क्या नहीं बना सकते हम?
18 comments:
पत्रकारिता .. का ये नौटंकी का रूप देख कर उकता चुके है और ब्रेअकिंग न्यूज़ की बजाय अगले दिन अखबार पढ़ना ज्यादा उचित लगता है ... कभी कमिश्नर का कुत्ता ,कभी सानिया का रसोइया या रेअल्टी शोज़ का प्रसारण ... इलेक्ट्रोनिक मीडिया जागरूक होने की बजाय अपंग होती जा रही है. भारत के समाचारों के लिए अब बी बी सी ज्यादा सटीक लगता है ...
किसी भी व्यक्ति या सेलिब्रिटी की निजी जिंदगी में ताँकझाँक करना या यह खबर देना कि वह अपनी शादी में किस को बुला रहा है या किस को नहीं ...क्या मीडिया के पास कुछ सार्थक देने को नहीं बचा है । यह व्यक्ति का निजी निर्णय है कि वह अपनी शादी में किसे आमंत्रित करता है और किसे नहीं । मीडिया बेवजह भीड़ को आकर्षित करने के लिए ऐसी खबरें देता है, जिस से समाज में वैमनस्य बढ़ता है। हम इस प्रकार की खबरों का पुरजोर विरोध करते हैं ।
आपने बहुत ही अच्छा लिखा है,इस मीडिया के प्रति मन में इतनी घृणा भर गयी है कि इनके लिए कुछ भी लिखने का मन ही नहीं होता। ये सारे ह आदमखोर भेडिए हैं।
आपने बहुत ही अच्छा लिखा है,इस मीडिया के प्रति मन में इतनी घृणा भर गयी है कि इनके लिए कुछ भी लिखने का मन ही नहीं होता। ये सारे ह आदमखोर भेडिए हैं।
Sachmuch kitna sharmnak hai..khair maine to ye khabr dikhane wale chnls hi dekhna bnd kar diya hai.. Aadhi jagah serials ki khabren aati hain..aadhi jagah utpatang cheezen..kaheen koi khajana dhundhta hai kaheen koi bhavishya dikhata hai...koi sansani failata hai..khabar aur manoranjan me farq karna bhul gaye hain log..dhoni ki shadi bharat band par bhi bhari pad gayi thi..jabki na jane kin kin halat se janta guzri thi us din..
aaj to aapane meri dukhti rag pr haath rakh diyaa.. vijay anand jaisaa editor, director aur actor bahut kam dekhane ko milte hain..lekin jis din unki mrityu hui, us din raveena tandon ki shaadi ho rahi thi udaipur mein..aur saare channel yahi dikhaane mein lage the ki raveena ki barat kab chal rahi hai, kab pahunch rahi hai... vijay anand ke marne ki khbar bas neeche scroll kar rahi thi...
ek baazaaru sanskriti ka hissa hain ye news channel aur khud ko democracy ka fourth pillar kahate hain... ye pillar to kutton ke kaam aa sakataa hai.
Uff! Kab hamare channel ke reporters me paripakvta aayegi? Shayad Bharat hi nahi,poori duniya celebreties ke peechhe pagal rahti hai...Lady Diana ka patrkaron ne kiya peechha abtak yaad hai.
धोनी की शादी का रोचक चित्रण किया है आपने । मीडिया ने अपना काम किया . धोनी अपना ।
४ जुलाई को इस विषय पर रविश कुमार जी की बेहतरीन पोस्ट पढ़ी थी सही ही कहा गया है "बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना"
ये दीवाना मीडिया अब्दुल्ला बना आज हर सेलेब्रिटी की शादी में बिन बुलाये पहुच जाता है !
वैसे अगर शादी ५ जुलाई को हुई होती तो बेचारा मीडिया क्या दिखाता भारत बंद या धोनी की शादी ????..........और तब शरद पवार जी को तो और भी ज्यादा गुस्सा आ जाता !
बहुत सार्थक लेख....आज मीडिया बस यही सब कुछ परोस रहा है...ऐसे ही जागरूकता का अलख जगाये रहें
हा हा हा .....इसे कहते हैं सुपर रिन की धुलाई ..एक ही चोट में सारी मैल बाहर ..। सोच रहा हूं कि क्या ये मीडिया वाले किसी दिन कोई ऐसी बहस आयोजित कर सकेंगे ..वो भी लाईव जिसमें खुद इन्हें ही कटघरे में खडा किया जा सकेगा ???नहीं कभी नहीं
media ka star din par din girta ja raha hai....isame koi shak nahee .
vaise janta me bhee celebrities ke life ke bare me janne kee utsukta kum nahee.......
STARDUST.....FILMFARE........JUADA BIKTE HAI.........
KADAMBINEE SARITA PATRIKA KEE TULNA ME.
पत्रकार नहीं मज़मेबाज़ हैं ऐसे चैनल।
तो हम अपना समय क्यों बरबाद करें।
मीडीया की गहरी साजिश देखिया ... पहले हीरो बनाते हैं ... पता है क्यों ? .... क्योंकि बाद में मसाला ले सकें अपना चैनल चलाने के लिए ... कम से कम २ दिनों का मसाला तो मिला ही है मीडीया को इस शादी पर ..... अगर ढूनी हीरो न होता तो ये मसाला कहाँ से मिलता ....
स्मार्ट इंडियन की टिप्पणी से सहमत कि मीडिया के लोग मजमे बाज है और इनका जमूरा हम जनता हैं। सशक्त लेखन ही अंतत: परिवर्तन लाता है।
सही कहा आपने ,मुझे तो नही लगता की कोई अच्छा पत्रकार बचा हैं ,मेरे घर के एक सदस्य ने इस दुख:दायी पत्रकारिता के चलते अपनी नौकरी छोड़ दी ,क्योकि वह ऐसी पत्रकारिता नही कर सकता था .क्या कहे कभी ये न्यूज़ सास बहु के झगडे दिखाती हैं ,कभी इसकी उसकी शादियाँ .कुछ न कुछ करना चाहिए इनकी रोकधाम के लिए आपका ब्लॉग और पोस्ट दोनों बहुत सार्थक हैं ,बधाई
वीणा साधिका
hmne to samachaar dekhna hii chood diya hai. isse achchha net par bbc. news padh lete hain.
Post a Comment