शर्म से लाल हुई जाती है, और गुस्से में,
लाल पीली हुई जाती है ये जानम मेरी.
कैसे गिरगिट से मैंने प्यार किया!
दिल ने ये मान लिया है कि बस मेरी हो तुम
तुमसे मिलना नहीं मुमकिन, दिमाग़ कहता है
ऑक्टोपस कहाँ जाकर बैठे!
चुप तुम भी थीं, चुप मैं भी था, दोनों चुप थे.
झगड़ा था, और खामोशी की शर्त लगी थी
उफ, कितनी बातें करती हैं आँखें तेरी!
27 comments:
naya rang dekhane ko mila..............
blog jagat ka asar to aana hee tha...........jo demand hai vo hee supply karana hee pragati hai............aajkal.......
@ Apanatva
दिल तो बच्चा है, जी!
वाह वाह वाह कविता के तो क्या कहने लेकिन पहली बार में समझ नहीं आई इसलिए दोबारा पढ़ी और फिर जो समझ आया उसको ब्यान करने से पहले अपनत्व जी का जो कमेन्ट पढ़ा उसको पढने के बाद तो बोलती बंद वैसे सही कहा है जो डिमांड है वही सप्लाई करना पढ़ता है और उस पर आपकी प्रतिक्रिया toooooooooo good राजेश खन्ना जी पर फिल्माया हुआ गाना याद आ गया " दुनिया में रहना है तो काम कर प्यारे, खेल कोई नया सुबह शाम कर प्यारे ..........." फिल्म का नाम शायद "रोटी" था बहुत पहले देखी थी इसलिए नाम याद नहीं ! क्या आप मुझे इस ऑक्टोपस वाली फोटो और "चाँद पर भारत बंद" वाली आपकी रचना की चाँद वाली फोटो का URL दे सकते है plzz दोनों ही फोटो बहुत खुबसूरत है !
मज़ेदार कोशिश. तस्वीरों ने तो खूब समाँ बांधा!
आपकी इन त्रिवेणियों ने “गुलज़ार साब” कि एक त्रिवेणी याद दिला दी ;-
बे लगाम उड़ती हैं कुछ खवाहिशें ऐसे दिल में
मेक्सीकन फिल्मों में कुछ दौड़ते घोड़े जैसे
थान पर बाँधीं नहीं जाती सभी खवाहिशें मुझ से.
@ apanatva
@ soni garg
डिमांड और सप्लाई ? गुलज़ार साब कि त्रिवेणियां तो कब का भूला बैठा है यह बाज़ार!
प्रतीकों का सार्थक और सशक्त प्रयोग किआ गया है।
संवदेनशील लोगों से इतनी डरावनी तस्वीरों की अपेक्षा नहीं है। हम जैसे कमजोर दिल वाले तो आगे से आपके ब्लाग पर ही नहीं आएंगे,ध्यान रखें। हां कविताएं तो बुलाती हैं।
बहुत खूब!
जबरदस्त आधुनिक और समसामयिक रचना मज़ा आ गया
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bhut khub bhaayi yeh nyaa dil ki gehraaiyon ko chune vaalaa anaaz khdaa ki qsm bhut psnd aayaa yeh klaa khaa se laaye yar plz btaa do is kaarnaame ke liyen bdhaayi. akhtar khan akela kota rajsthan
यह बच्चा दिल तो बहुत ज़बरदस्त निकला....अंतिम त्रिवेणी बहुत पसंद आई...
टुकड़ा टुकड़ा जोरदार
दिल तो बच्चा है जी, पर बातें बड़ों से भी बड़ी करता है।
एकदम ग्रेट।
अंतिम वाला तो जबरदस्त है ,छा गया ।
दिल तो बच्चा है और बाते बड़ों की करता है। कभी गिरगिट और कभी ओक्टोपस को पास रखता है। अच्छी रचना के लिए बधाई।
आपकी पोस्ट आज चर्चा मंच पर भी है...
http://charchamanch.blogspot.com/2010/07/217_17.html
खड्गसिंह जी के दिल में जब तक संवदेना रहेगी,बाबा भारती सदा उनका स्वागत करेगा। इसलिए दुबारा आया। थोड़ा सा डर निकल गया । प्रयोग सचमुच अच्छा है। अंतिम त्रिवेणी का कथ्य और चित्र दोनों सचमुच एक दूसरे के पूरक हैं। ऐसा प्रयोग आप करते रहें। पर तस्वीरों में कोमलता भी रहे।
एक और बात पहली त्रिवेणी में कैसे गिरगिट से कुछ और अलग ही अर्थ निकल रहा है। अगर जानम हीं हैं तो कैसी गिरगिट होंगी।
यहां टिप्पणी बाक्स में भी डर लग रहा है। कोई तारीफबाज आप पर इतने फिदा हो गए हैं कि 21 बार अपना कमेंट दर्ज कर दिया। मुबारक हो।
antim teen panktiyaa ati sundar..........
aapko dar nahi lagta girgit aur octopas ke chitr lagate hue...kabhi kha gaye to ????
ये बच्चा तो जबर्दस्त्त लिखता है ...आखिरी रचना बहुत अच्छी लगी :)
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