सम्वेदना के स्वर

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सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Sunday, October 3, 2010

दोस्त चिड़िया


सुबह सुबह तेज़ हवा के झोंके ने बेडरूम की खिड़की को खट की आवाज़ के साथ खोल दिया. फिर ठंडी हवा के झोंको ने पूरे घर में धमा-चौकड़ी मचानी शुरू कर दी.

आम तौर पर घोड़े बेच कर सोने वाली आशी के नन्हे गालों पर जब हवा के एक झोंके की हल्की सी चपत लगी, तो नींद में ही वो मुस्कुरा दी! फिर न जाने कहाँ से एक लम्बी पूँछ वाली काली चिडिया आ कर ख़िड़की पर बैठ गयी और चीं-चीं की सरगम पर गाना गाने लगी. गाना शायद बहुत मधुर था, तभी तो इस गाने ने आशी के मन में, गायक को देखने की चाह जगा दी. अपने तकिये को अभी भी जोर से पकड़े-पकड़े, आशी ने उस आवाज़ की दिशा का मन ही मन अन्दाज़ा लगाया और अपनी एक आंख खोल कर उस ओर देखा. आशी की नज़रें सीधी लम्बी पूँछ वाली काली चिडिया पर एक बार जो ठहरी, तो फिर दोनों आंखे यंत्रवत खुलती ही चली गयीं. और फिर तो, नींद की नदी में नहा कर ताजगी से भरी आशी और उस छोटी काली चिडिया में मस्ती की एक होड़ सी लग गयी। उस छोटी काली चिडिया का चीं चीं गान और बिस्तर पर औंधी पड़ी आशी के पैरों की एक जुगलबन्दी शुरू हो गई.

अचानक चिडिया फुर्र से उड़ गयी और मस्ती की यह जुगलबन्दी, क्षण भर को टूट ही गयी. शायद यह पल भर में घटी इस दोस्ती का जादू ही होगा जो सब कुछ छोड़ छाड़ कर उठ भागी आशी, उसके पीछे पीछे, बालकनी तक. चिडिया अब मज़े से एक पतली सी टहनी पर बैठी झूला झूल रही थी और बुला रही थी आशी को. जैसे कह रही हो, आ जाओ न अब नीचे, बागीचे में. आशी उसको बस एक टक देख रही थी विस्मित सी. चिडिया के पंखों का खुलना और आसमान में उड़ना... उड़ते जाना. वो सोच रही थी काश उसके भी पंख होते और वो भी उड़कर चिडिया के पास पहुँच जाती।

तभी मम्मी की आवाज़ पड़ी उसके कानों में, “चलो! अब स्कूल जाने को तैयार हो जाओं!” मम्मी की बात को अनसुना कर आशी अब भी मस्त थी, उस चिड़िया की उछल कूद देखने में, रात की बारिश से बागीचे में जो पानी जमा हो गया था, उसमें अब नहा रहीं थीं चिड़िया रानी. इधर मम्मी की आवाज़ रह रहकर घर के अलग अलग कोनों से अब भी आशी के कानों में जब तब पड़ रही थी. पर चिडिया के नये नये करतबों को देखने में लगी आशी इस मज़े को छोड़ना ही नहीं चाहती थी. समय हो चला था. इसलिए अब ख़ुद मम्मी वहाँ आ धमकीं और हाथ पकड़ कर खींचकर ले गईं आशी को और जा धकेला उसे बाथरूम में, यह कहकर कि आज गणित का टेस्ट है, तैयार होकर जल्दी स्कूल जाओ.

अनमने ढंग से आशी तैयार हुई और जब नाश्ता किया तो ब्रेड का एक टुकड़ा बचा लिया उसने, यह सोचकर कि जब नीचे बागीचे से गुजरेगी, तो वह उस लम्बी पूँछ वाली काली चिडिया को दे देगी, दोस्ती का यह उपहार. फिर पापा के साथ स्कूल जाती हुई जब वो गुजरी बागीचे से, तो उसकी नज़रें दूर तक खोजती रहीं अपनी दोस्त चिड़िया को, पर नहीं मिली वो. आंखों मे गहरी उदासी लिये चल दी वो बस्ते का बोझ ढोते-ढोते, पापा के साथ स्कूल के रास्ते. कुछ चिडिया मिलीं भी उसे पेड़ों पर. लेकिन वो नहीं जिसकी उसे तलाश थी.

नौ बजे का समय था. कक्षा में गणित का टेस्ट शुरु हो चुका था, खिड़की के पास वाली कुर्सी पर बैठी आशी ने ब्लैक-बोर्ड से गणित के प्रश्न अपनी कापी में उतार लिये थे और जबाब लिखने की कोशिश मे लगी थी. तभी कक्षा के बाहर वाले मैदान में खड़े नीम के पेड़ पर उसकी नज़र पड़ी तो उसने देखा कि वही लम्बी पूँछ वाली काली चिडिया एक गीली टहनी पर लटकी झूला झूल रही थी. उफ! कितनी खुश हो गयी आशी, जैसे कोई बिछड़ा दोस्त मिला हो उसे अभी अभी, किसी अनमोल खज़ाने जैसा.

अब वो कक्षा में बस नाम को ही रह गयी, मन और हृदय उस चिडिया के साथ झूला झूल रहे थे, और ऊँची ऊँची पींगे भरने की मानो होड़ लगी थी दोनों में. न जाने कितनी देर तक चला यह सिलसिला. नीम के कोने कोने को थका गया दिया इन दोनों की बेमतलब की भाग-दौड़ ने.

तभी ज़ोर के घंटे की आवाज़ से आशी अपनी कुर्सी पर वापस आयी, जल्दी जल्दी, जैसे तैसे प्रश्न हल करके दिये उसने टीचर को और भाग के फिर जा पहुँची नीम के तले. मगर चिडिया अब फिर से जा चुकी थी, वहाँ से. उदास आशी ने लंच भी नहीं किया उस रोज़, बाकी कक्षा में भी बैठी रही वह - अनमनी सी अलग थलग.

आखिरी कक्षा में गणित की टीचर फिर आयीं टेस्ट का रिज़ल्ट लेकर. आशी ने भी उदास मन से लिया जब अपना पर्चा तो देखा, उसमें दो बड़े बड़े ज़ीरो थे अंडे जैसे. और न जाने क्या सोचकर, अचानक खुश हो गयी आशी, बिल्कुल चिडिया के जैसी. अपनी सहेली से बोली, “तुझे पता है! मेरी चिड़िया के अंडे हैं ये! इनसे जब बच्चे निकलेंगे तो हम दोनों मिलकर उनसे खेलेंगे.”

24 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

आशी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ! बहुत प्यारी कहानी!! बेहतरीन तोहफा!!!

Apanatva said...

Bahut hee pyaree kahanee baccho kee apanee ek alag hee pyaree see duniya hotee hai........
jaroorat hotee hai samjhane wale mamma papa kee.....:)
many many happy returns of the day.......
Do convey my wishes to Aashee .

दीपक बाबा said...

संवेदना के स्वर पर संवेदना से भरी कहानी ........
उम्द्दा
दिल को छु लेने वाली.


एक बार फिर कहूँगा....... बढिया. और हाँ कोपी में मिले अंडे हर बार मूड ऑफ नहीं करते......

साधुवाद एक अच्छी रचना के लिए.

ZEAL said...

.

बच्चे मन के कितने कोमल होते हैं। ये आशा की मासूमियत ने बता दिया। परीक्षा में मिले जीरो भी उसे आशान्वित कर रहे हैं एक सुन्दर भविष्य के लिए। जीवन जीने की कला तो कोई इन मासूम बच्चों से सीखे।

आशी कौन है ?। क्या आपकी बेटी है ?-- उसे जन्म-दिन की ढेरों शुभकामनाएं।

इस सुन्दर कहानी के लिए आभार ।

.

संजय @ मो सम कौन... said...

इस खुशी के आगे दो बड़े अंडे तो क्या, दो जहाँ भी छोटे है।
बिटिया का जन्मदिन है आज?
उसे बहुत सा प्यार और आपको बधाई।

स्वप्निल तिवारी said...

heheheh...ye ande pakar khush hone ka resaon bahut qatal tha kasam se ...heheh

sonal said...

bahut masoom si kahani...

प्रवीण पाण्डेय said...

बच्चों का मन और हमारा अनुशासन।

रचना दीक्षित said...

बच्चों से तो हम सोचने का अधिकार भी छीन चुके है. बहुत सुंदर सम्वेदनाएँ कहानी के माध्यम से.

मनोज भारती said...

आशी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ !!!

बच्चों को इसी तरह प्रकृति और अपने आस-पास के पर्यावरण...जड़-चेतन के प्रति सजग किया जा सकता है और चेतना के विकास में ऐसे ही क्षण महत्वपूर्ण होते हैं । उम्मीद है इस पर आशी को अपनी गणित टिचर से सजा नहीं मिली होगी ।

पूनम श्रीवास्तव said...

priy aashi ko janm-din ki hrdik badhai.man ko chhoo gai yah pyari si dosti .kahaani bahut hi achhi lagi.
poonam

शिवम् मिश्रा said...

आशी कौन है ....यह तो नहीं जानता पर अगर आज उसका जन्मदिन है ......तो बिटिया को हमारी ओर से भी बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

बेहद उम्दा उपहार दिया है आपने इस कहानी के रूप में !

मनोज कुमार said...

आशी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Arvind Mishra said...

बालमन की सुन्दर कथा -हा हा हा -वाह बहुत मजेदार प्रस्तुति !
आशी को आशीष !

उम्मतें said...

बड़ी सुन्दर चिड़िया है वो , जो जन्म दिन पर दोस्त बन कर आई ! क्लास में मिले अण्डों की चिंता कैसी ? देखना एक दिन उनमें से भी ढेर सारे ख्यालात और नया ज्ञान लिए , दो परिंदे निकलेंगे और फिर वो ही टीचर हमारी प्यारी बिटिया को खुद से होकर १०० में १०० नंबर देगी !

जन्म दिन पर अशेष शुभकामनायें !

सम्वेदना के स्वर said...

मेरी बिटिया,"आशी" इतने सारे अंकल,आंटी,भैय्या और दीदी का स्नेह आशीष मिलने से बहुत खुश है, सभी को थैंक्यू कहती है।
-चैतन्य

दिगम्बर नासवा said...

बच्चों के मान की मासूमियत बयान कर रही है आपकी कहानी ... छोटी छोटी बातों में उनकी खुशी होती है ... छल कपाट से दूर .... पर कुछ उदासी लिए है ये कहानी ....

और आज आशि का जनम दिन है .... बहुत बहुत शुभकामनाएँ ....

mridula pradhan said...

behad achchi lagi.

shikha varshney said...

आशी को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाये.
बालमन पर सार्थक कहानी.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

मन को छुं लेने वाला लेख ...
आशी क्या आपकी बेटी है ?
उसे जन्म-दिन की ढेरों शुभकामनाएं।

समयचक्र said...

आशी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ...
बहुत ही रोचक अंत.... बढ़िया पोस्ट....

kshama said...

Kitna pyara,rochak qissa bayan kiya hai aapne...aur Aaashika ye kahna,ki,ye ye meri chidiyake do ande hain......bahut hee aashawadi nazariya ek nanhee bachhee ka!

Janam din kee dheron shubhkamnayen!

Rohit Singh said...

आशी को ढेररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररर सारा प्याररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररररर

और हां कहना कि चिड़िया रानी से दोस्ती बना के रखे। बारिश के पानी में उधम मचाती रहे। उसके सोकर उठने पर लगा कि मेरे पास ही प्यारी से चिड़िया सोई हुई है.........। और हां जन्मदिन की मुबारक बाद सुखे ही सुखे....फिलहाल.......................................

राजेश उत्‍साही said...

आशी के जन्‍मदिन पर ढेर सारे चिडि़या के अंडे। चैतन्‍य जी आप तो कहानियां ही लिखा करिए। कहां दुनिया जहान की बातों में लगे रहते हैं। यह अलग बात है कि कहानी में भी ये बातें की जा सकती हैं।
किस्‍सागोई के लिए बधाई।

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