इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जिस तरह घर-घर अपनी पैठ बना ली है, उसका एक दुष्प्रभाव यह हुआ कि मदारी ज्योतिषियों की संख्या बढ़ी है। आप कोई भी चैनल देखें, इन मदारी ज्योतिषियों की एक पूरी जमात अपने लैपटॉप पर त्वरित समाधान बाँचती नज़र आयेगी।
उपभोक्तावाद की इस रेलमपेल में कहीं तिलक चुटियाधारी खाँटी पंडित जी दिखते हैं, तो कहीं टाई-सूट में सजे फ़र्राटा अंग्रेज़ी बोलने वाले एस्ट्रोलोजर। इन सबके बीच एक प्रचलित विद्या है अंक ज्योतिष। इस प्रचलित अंक ज्योतिष में व्यक्ति की जन्मतिथि (ईसवी कलेंडर के अनुसार) के अंकों को जोड़कर एक मूलांक बना दिया जाता है और फिर उसे आधार बनाकर अधकचरा भविष्य बाँच दिया जाता है। इसी तरह अंग्रेजी के अक्ष्ररों (ए, बी, सी, डी आदि) को एक एक अंक दिया है. और लोगों के नाम के अंग्रेजी अक्षरों के अंकों के योग से उसका मूलांक निकाला जाता है. फिर उसी आधार पर उसका भी भविष्य बाँच दिया जाता है।
आइये सबसे पहले देखें कि अंक ज्योतिष का आधार क्या है ? और यह कितना वैज्ञानिक हैः
1. वैदिक ज्योतिष, जो महर्षि पराशर, जैमनी, कृष्णमूर्ति आदि की उत्कृष्ट परम्परा पर आधारित है, उसमें जातक के जन्म की तिथि, समय और स्थान को लेकर, एक वैज्ञानिक तरीके से जन्म के समय, आकाश में ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति का निर्धारण कर समय का आकलन किया जाता है। तत्पश्चात ज्योतिष के शास्त्रीय ग्रन्थों के आधार पर फलित कहा जाता है। ज्योतिषीय गणनाएँ पूर्णतः खगोलीय सिद्धांतों पर आधारित होती हैं, फिर भले ही फलित ज्योतिष को अवैज्ञानिक कहा जाये।
इसके विपरीत अंक ज्योतिष ईसवी कलेंडर की तिथि के अनुसार चलता है जिसका एक सौर वर्ष मापने के अलावा कोई सार्वभौमिक आधार नहीं है। समय के अनंत प्रवाह में ईसवी कलेंडर मात्र 20 शताब्दी पुराना है। जिसमें अचानक एक दिन को 1 जनवरी लेकर वर्ष की शुरुआत कर दी गयी और शुरु हो गया 1 से 9 अंकों की श्रेणी में जातक को बाँटने का सिलसिला।
2. यह सर्वविदित है कि इतिहास की धारा में अनेक सभ्यताओं तथा राजाओं ने अपने अपने कलेंडर विकसित किये जिन सबके वर्ष और तिथियों में कोई तालमेल नहीं है। तब सवाल यह उठता कि अंक ज्योतिष का आधार ईसवी कलेन्डर ही क्यों?
3. इसका एक कारण शायद यह हो सकता है कि अंग्रेज़ों ने चुँकि विश्व के एक बड़े हिस्से पर राज किया, इसलिये ईसवी कलेंडर का प्रचलन बढ़ गया। यहाँ तक कि विभिन्न गिरजाघरों ने इस कैलेंडर के दिनों की मान्यताओं पर प्रश्न चिह्न लगाए हैं. और तो और, जो सबसे अवैज्ञानिक बात इसकी सार्वभौमिकता को चुनौती देती है, वो यह है कि भिन्न भिन्न देशों ने इस कैलेंडर को भिन्न भिन समय पर अपनाया.
4. ईसवी कलेंडर की शुरुआत 1 ए.डी. से होती है जो 1बी.सी. के समाप्त होने के तुरत बाद आ जाता है, यह तथ्य मज़ेदार है, क्योंकि इस बीच किसी ज़ीरो वर्ष का प्रावधान नहीं है। देखा जाये तो ईसवी कलेंडर की तिथियाँ, मूलत: सौर वर्ष को मापने का एक मोटा मोटा तरीका भर है।
जब हम ईसवी कलेंडर के विकास पर दृष्टि डालतें हैं तो पाते हैं कि कलेंडर के बारह महीनों के दिन समान नहीं हैं और इनमें अंतर होने का कारण भी स्पष्ट नहीं है. यदि इस कलेंडर का इतिहास देखें तो इतनी उथल पुथल है कि इसकी सारी वैज्ञानिक मान्यताएँ समाप्त हो जाती हैं. इस कलेंडर पर कई राजघरानों का भी प्रभाव रहा, जैसे जुलियस और ऑगस्टस सीज़र. 13 वीं सदी के इतिहासकार जोहान्नेस द सैक्रोबॉस्को का कहना है कि कलेंडर के शुरुआती दिनों में अगस्त में 30 व जुलाई में 31 दिन हुआ करते थे। बाद में ऑगस्टस नाम के राजा ने (जिसके नाम पर अगस्त माह का नाम पड़ा) इस पर आपत्ति जतायी कि जुलाई (जो ज्यूलियस नाम के राजा के नाम पर था) में 31 दिन हैं, तो अगस्त में भी 31 दिन होने चाहिये. इस कारण फरवरी (जिसमें लीप वर्ष में 30 व अन्य वर्षॉं में 29 दिन होते थे) से एक दिन निकालकर अगस्त में डाल दिया गया। अब क्या वे अंक ज्योतिषी कृपा कर यह बताएँगे कि दिनों को आगे पीछे करने से कालांतर में तो सभी अंक बदल गये, तो इनका परिमार्जन क्या और कैसे किया गया?
5. सारी सृष्टि एक चक्र में चलती है सारे अंक एक चक्र में चलते हैं जैसे 1 से 9 के बाद पुन: 1 (10=1+0=1) आता है. ईसवी कलेंडर के आधार पर अंक ज्योतिष में अजब तमाशा होता है जैसे 30 जून (मूलांक 3) के बाद 1 जुलाई (मूलांक 1) आता है। इसी तरह 28 फरवरी (2+8=10=1) के बाद 1 मार्च (1 अंक) आता है।
6. नाम के अक्षरों के आधार पर की जाने वाली भविष्यवाणियाँ अंगरेज़ी (आजकल हिंदी वर्णमाला के अक्षरों को भी) के अक्षरों के अंकों को जोड़कर की जाती हैं. अब यह तो सर्वविदित है कि नाम के हिज्जे उस भाषा का अंग है जो जातक के देश या प्रदेश में बोली जाती है और जो साधारणतः निर्विवाद होता है. जैसे ही इसका अंगरेज़ी लिप्यांतरण किया जाता है, वैसे ही विरोध प्रारम्भ हो जाता है. ऐसे में सारे अंक बिगड़ सकते हैं और साथ ही जातक का भविष्य भी !? इसी अधूरे ज्ञान का सहारा लेकर आजकल लोग इन ज्योतोषियों की सलाह पर अपने नाम की हिज्जे बदलने लगे हैं.
अंक ज्योतिष के यह अंतविरोध, इसके पूरे विज्ञान को तथाकथित की श्रेणी में ले आते हैं। एक सवाल यह भी रह जाता है कि क्या पूरी मानव सभ्यता को मात्र 9 प्रकार के व्यक्तियों में बांट कर इस प्रकार का सरलीकृत भविष्य बाँचा जा सकता है? ऐसे में इस नितांत अवैज्ञानिक सिद्धांत को, ज्योतिष के नाम पर चलाने के इस करतब को क्या कहेंगे आप?
पुनश्च : उपरोक्त विचार मात्र अंक-ज्योतिष के विषय में हैं। ज्योतिष शास्त्र के विषय में नहीं क्योंकि उसके सिद्धांत और पद्धतियाँ, खगोल शास्त्र पर आधारित हैं और कई अर्थो में वैज्ञानिकता लिये हैं। ज्योतिष शास्त्र में अभी और गहन शोध होने बाकी हैं और उसे शायद इस तरह ख़ारिज नहीं किया जा सकता।
37 comments:
मैंने अपना अंक जोतिश मिलाया एक wbsite से
सब उल्टा पुल्टा आया
वैसे भी एक तरीक में जन्मे इंसान का भाग्य एक सा कैसे हो सकता है
सारगर्भित पोस्ट।
निराग्रह यथार्थ निरूपण।
हमेशा अनजाने को जानने की जिज्ञासा को भुनाया जाता है, बेतार्किक संभाषण न हो, इसलिये इस को अंको से जोड दिया गया है।
मुझे तो इस पर विश्वास है। कई बार, इसे सत्य भी पाया है।
यह भी एक विज्ञान है। इसके अपने सिद्धांत हैं। सीमाबद्धता भी।
१६.१८ पर यह टिप्पणी लिखना शुरु किया था। मूलांक ७, ताकि इस असहमति से आप नाराज़ न हो जाएं।
और ऐसा ही होगा।
देखिएगा मेरा आंकलन सही होगा!
@ मनोज जी
आपसे ऐसे कैसे नाराज़ हो जायेंगें हम? यह लिख रहें हैं हम 17 hour 02 minute 03 second पर, मूलांक हुआ 3 यानि बृहस्पति तो फिर ज्ञान की बात समझनी ही पड़ेगी न? हा..हा..हा...
main to sirf maje ke liye yaa kahie timepaas ke liye ise use karti hoon
badhiyaa lekh
सारगर्भित आलेख.
Astha aur vishvas jo karte hai NUMEROLOGY par ve hee vichar de sakte hai..........hum to karm me vishvas rakhne wale logo me se hee hai........
vaise sarthak lekh .
aabhar.
Ek bar do tho kitab khareede the bhavishya batana seekhne ke liye shayad keero ka hast rekha wigyan..u bahut kathin tha..fir numero ki bi ego kitab hath lag gayi..to usko padhe rate seekhe..aur jab apna moolank bhagyank sab nikale to sab ulta pulta tha..hehe..pandi ji logon ki bhavishyavani jyada sahi lagti hai number wale system se...bahut jankari wala post tha..nai nai baat pata chali..jaise july august..aur BC ke baad AD aur uske beech 0 year ka na hona..waise ho kaise sakta hoga.. Christ ki jitni umar thi utna pura saal beech me se gayab hai na ? Paida hone se pahle BC aur marte hi AD..? Aise hua tha..? Ya kuch aur system tha..mera dimag chakra gaya...
मुझे ज्योतिष में विश्वास है पर अंध विश्वास नहीं है ठीक उसी तरह से जैसे मैं वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति एलोपेथी पर विश्वास तो करता हूँ पर अन्धविश्वास कभी नहीं करता. आपने कई बातें तो बेहतरीन कही हैं जो वास्तव में अंक ज्योतिष पर विश्वास रखने वालों के लिए विचार करने योग्य हैं.
काफ़ी अच्छी पोस्ट...लेकिन मुझे किसी भी तरह के ज्योतिष पर विश्वास नही है..॥
जब भी ज्योतिष का सहारा लिया हमेशा उल्टा रिज़ल्ट आया....ये सब बेकार की बातें है...
नाम में दो अक्षर कम या ज़्यादा करने से किस्मत नही बदल जाती है..॥
तदबीर से तकदीर लिखी जाती है....ज़िन्दगी की राह और मोड पर इंसान को दो रास्ते मिलते है...उन दो रास्तों में से जो रास्ता वो चुनता है तो उसी चुनाव से हिसाब से उसका आगे का भविष्य तय होता है....
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"दहशतगर्द कौन और गिरफ्तारियां किन की, अब तो सोचो......! "
"कुरआन का हिन्दी अनुवाद (तर्जुमा) एम.पी.थ्री. में "
Simply Codes
Attitude | A Way To Success
हमारे आगरा में जब किसी को चोट लग जाती या ऐक्सीडेन्ट हो जाता है तो लोग कहते है कि इसको चोट बुला रही थी..तभी घर पर बैठे-बैठे से वहां उठ्कर चला गया...
यही तदबीर है....हर रास्ते पर आगे का भविष्य का लिखा है जो रास्ता चुनोगें उसी अनुसार आगे की ज़िन्दगी चलेगी....और मौत का तो वक्त तय है...उसे कोई नही रोक सकता...
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"दहशतगर्द कौन और गिरफ्तारियां किन की, अब तो सोचो......! "
"कुरआन का हिन्दी अनुवाद (तर्जुमा) एम.पी.थ्री. में "
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अगर नाम के अल्फ़ाज़ों में हेरफ़ेर करके और यहां तक की नाम बदलने के बाद तकदीर बदल जाती और एक नाकामयाब इंसान कामयाब बन जाता तो दुनिया में से गरीबी, बेबसी, बेरोज़गारी वगैरह वगैरह सब खत्म हो जाता...
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"दहशतगर्द कौन और गिरफ्तारियां किन की, अब तो सोचो......! "
"कुरआन का हिन्दी अनुवाद (तर्जुमा) एम.पी.थ्री. में "
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वैज्ञानिक आधार तो कुछ नहीं है ....मगर व्यक्तिगत तौर पर ४ और ८ का अंक मेरे जीवन में बार बार आता है ! यह संयोग है या सत्य पता नहीं !
ऐसी सभी चीजें जो मानें, उनके लिये सच है, बाकियों के लिये झूठ है। मुझे लगता है कि मनोवैज्ञानिक आधार ज्यादा है ऐसी बातों का।
सब इस बावरे मन के खिल हैं जी।
अंक ज्योतिष का तो नहीं ज्ञान लेकिन मैं ९९ के चक्कर में जरुर पड़ा हूँ.. धनबाद में मकान नंबर ९९ था... यहाँ गाजिअबाद में प्लाट नंबर ९९ है.. कार का नंबर १७९९ है.. बाइक का नंबर ६५९९ है.. बैंक अकाउंट नंबर भी **********९९ है.. और पैर में चकरघिन्नी लगा हुआ है.. ९९ का चक्कर .. ज्यादा और ज्यादा.. चाहे कविता ही क्यों ना हो.. प्रेम ही क्यों ना हो.. और पैसा भी...
जी हाँ.
पहले तो यही तय कर लिया जाय कि परम्परावादी भारतीयों को अपना जन्मदिन कि पद्धति से मानना चाहिए, पारंपरिक हिन्दू कैलेण्डर को (जो भिन्न-भिन्न हैं) या आधुनिक कैलेण्डर को. मेरे जीवन को वर्त्तमान में जो तिथियाँ नियंत्रित करती हैं वे आधुनिक है परन्तु मेरे घर में ही बहुत सी बातों के लिए पारंपरिक कैलेण्डर को आगे कर देते हैं.
फिर यह लोचा कि जन्मतिथि मात्र मानी जाय या जन्मतिथि, महीने, और वर्ष के अंकों का जोड़, इसमें भी कई विधियाँ हैं जिनसे योग पृथक आता है.
फिर इसमें वर्णमाला के अक्षरों को भी शामिल कर लेना पचड़े को और ज्यादा बढ़ा देता है.
आपकी पोस्ट की अधिकांश बातों से सहमत हूँ केवल अंतिम पैरा को छोड़कर जिसमें आपने कहा है कि ज्योतिष का खगौलिक आधार है. इसे आधुनिक space science के नज़रिए से थोडा स्पस्ट कर दें.
सार्थक पोस्ट..अपने अपने विश्वास है लोगों के. कई बार कम से कम मानसिक सहारा तो मिल ही जाता है. आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है.
संवेदना के स्वर , बंधुओ ,
तुलनात्मक रूप से आपने अपनी बात कही ! पता नहीं कैसे कुछ अंक मेरे जीवन में बार बार आये ! शायद इसलिये कि वे तो केवल १ से ९ ही हैं और घटनाएं बहुतेरी , तो फिर आये बिना जाते कहाँ :)
टीवी पर ज्योतिषियों के गेटअप पर मैंने भी लिखा था कभी :)
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चाहे फलित ज्योतिष हो या न्यूमरोलोजी... अच्छा टाईमपास है... इस से ज्यादा न कुछ इनमें है और न ही मानना चाहिये!
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@ निशांत मिश्र जी
इसी लेख में हमने यह भी कहा है कि “ ज्योतिषीय गणनाएँ पूर्णतः खगोलीय सिद्धांतों पर आधारित होती हैं, फिर भले ही फलित ज्योतिष को अवैज्ञानिक कहा जाये।“
भारतीय ज्योतिष के दो भाग हैं, “गणित” और “फलित” । जन्म कुंडली जिस तरह सम्पूर्ण खगोलीय ज्ञान पर बनायी जाती है उसका हमने विधिवत अध्य्यन किया है देश के प्रतिष्ठित भारतीय विधा भवन, संस्थान दिल्ली में। और अभी तक अपनी “वैज्ञानिक बुद्धि” का तो यही निष्कर्ष है कि इसका गणित वाला भाग वैज्ञानिक है परंतु “फलित” वाला भाग वृहतपाराशर होरा शास्त्र आदि ग्रंथो पर आधारित है और उसके सूत्रों की जाचं के लिये अभी भी गहन शोध और डाटा कलेक्शन की आवश्यक्ता है, इस कारण उसे एकदम नकार देना घोर अवैज्ञानिक कृत्य हो जायेगा।
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I believe in all the sciences existing on earth. Having blind faith is not my domain. But yes , I believe in numerology. I find it very interesting as well.
Most of my observations about people , based on the their number has come true. And yes, it helps me in knowing a person, his nature, attitude, likes , inclination and so many aspects about him.
Yesterday I met a person here in Bangkok . After a brief interaction , I asked him " Are you a 'Three' number and he smiled. Then he asked me - are you a 'two' number ? I smiled back at him.
This is called faith, observation and reading.
We both enjoyed the science perfectly we believe in .
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@ Zeal/Divya ji
Point well taken!
प्रिय संवेदना बंधु द्वय, मैं आपके ज्ञान को किसी प्रकार से कम नहीं आंकता परन्तु ज्योतिष की प्राचीन संहिताओं के लिखे जाने के बाद के सैंकड़ों सालों में खगौलिक स्तर पर नक्षत्रों और ग्रहों आदि के सम्बन्ध में मानव ने अभूतपूर्व ज्ञान अर्जित किया है. यदि आज भी आपकी गणनाएं प्राचीन पद्धतियों पर आधारित हैं तो वे दोषपूर्ण हैं.
मिसाल के तौर पर प्राचीन नेत्र कुछ नक्षत्र समूहों को ही भली प्रकार देख पाए और आधुनिक विज्ञानं ने और भी कई नक्षत्र और गृह ढूंढ निकाले. क्या ये नवीन गृह और नक्षत्र मनुष्य पर प्रभाव नहीं डालेंगे?
और राहू-केतु जैसे काल्पनिक पिंड मनुष्य पर प्रभाव कैसे डालते हैं इसका उत्तर भी ज्योतिष में गोल-गोल ही है जैसे इस सवाल का कि एक ही अस्पताल में एक ही समय में जन्म लेने वाले बच्चों का भाग्य कितना समान होना चाहिए.
uff sir aapke tark ne to mere dimag ka beda gark kar diya...:(
peechhle dino hi maine apne bete "yash kirti sinha" ko numberlogy ke adhar par "yash kritii sinha" kiya tha.........!!
par aapke baato me damm hai!!
प्रिय निशातं भाई!
अनंत के रहस्यों की हमारी खोज भी, वस्तुत: नास्तिक की खोज ही हैं और हम शायद अपने आपको इतना बड़ा नास्तिक मानते हैं कि विज्ञान की कुव्वत पर भी बार बार शक करते हैं।
विज्ञान भी अपनी अवधारणाओं में बार-बार सुधार करता है। न्यूटन नें कहा जो चीज़ उपर जाती है वो नीचे आती है। फिर बाद में पता चला के escape velocity भी एक चीज़ होती है और यदि 11.2 किलोमीटर प्रति सकेंड से उपर फेकीं जाये तो वापस नहीं आयेगी। प्रकाश को पदार्थ और उर्जा दोनों श्रेणी में रख कर समझने की कोशिश अभी चल रही है। अभी भी एक खोज होती है और तभी दूसरी उसको नकारती हुई आ जाती है, पर विज्ञान अपनी समझ बड़ाता हुआ चलता है।
....जारी
ज़्योतिष के बारे में इतना और कहना है कि यह वह खोई हुई विधा है, जिसका पिछले करीब 600-800 वर्ष के कालखण्ड में तो कोई खेवनहार नहीं रहा, जिस तरह अन्य विषयों को प्रश्रय मिला उस मायने में तो बिलकुल नहीं। इसे अपने पठन पाठन के विषयों में शामिल करने की आवश्यक्ता है। Throwing the baby with bath water जैसी बात ठीक नहीं लगती। आज इतने सारे नये विषयों पर हम शोध कर रहें है नये नये विषय उभर कर आ रहें हैं ऐसे में ज्योतिष को बकवास कहकर नकार देने की समझ हमारी वैज्ञानिक सोच के दायरे में नहीं आती है।
नये ग्रहों जैसे हर्शल, नैप्च्यून, प्लूटो को आधुनिक ज्योतिष नें स्वीकारा भी है, राहू-केतू को ज्योतिष में छाया ग्रह माना गया है और यह हमेशा एक दूसरे से 180 डिर्ग्री के अंतर पर रहते हैं इसका कारण यह है कि यह कोई स्थूल ग्रह नहीं है वरन यह 3-डी में स्थित सूर्य और चन्द्र्मा की कक्षाये हैं जो एक दूसरे को काटती हैं। भारतीय विधा भवन, कस्तूरबा गाधीं मार्ग, नई दिल्ली स्थित संस्थान में ज्योतिषीय-खगोल पर ऐसी बहुत सारी शोधात्मक पुस्तकें उप्लब्ध हैं जिनमें इन सब बातों को वैज्ञानिक रूप से समझया गया है।
....जारी
निशांत भाई दूसरी तरफ भी बहुत सारे तर्क हैं और उन्हें समझे बिना कुछ कहना वैज्ञानिक तो बिल्कुल नहीं हैं।
हाँ, ज्योतिष के नाम पर चल रहे इस मदारीपनें के हम सख्त खिलाफ हैं, हमारे इस लेख के तेवर भी यह ब्यान करते हैं। ये अलग बात है कि आपका तथाकथित बुद्धीजीवी मीडिया ऐसे मदारीओं को अपने स्टूडियों में बैठा कर दिन रात अन्धविश्वास बड़ा रहा है।
निशांत जी… आपने इस परिचर्चा में भाग लेकर इसे सार्थक किया. प्रश्न विज्ञान को लेकर भी उठ सकते हैं और उठते हैं, न्यूलैंड्स के पेरिओडिक टेबुल को नकारा जाना सिर्फ इसलिए कि वो संगीत के सुरों की बात करता था, जो विज्ञान को स्वीकार्य नहीं था, बाद में मेंडेलीव को मान्यता दिया जाना, जिसने उसी संगीत वाली बात को घुमाफिराकर कह दिया था, तथाकथित वैज्ञानिक शब्दों में. ऐक्टिनाइड और लैंथेनाइड सिरीज़ आदि कई अवधाराणाएँ हैं जो (कु)तर्क द्वारा सिद्ध हुईं.
ज्योतिष तो उस पंचांग पर आधारित है जो “अवैज्ञानिक” होकर भी सूर्य चंद्र ग्रहण और ग्रहों की चाल का सटीक अंदाज़ा लगाता है. अगर शुरू से ही यह विषय भी पाठ्यक्रम में होता,तो आज हम इसपर भी उतना ही विश्वास कर रहे होते, किसी भी विज्ञान पर.
मेरा आशय सिर्फएक तार्किक वक्तव्य प्रस्तुत करने का है, इसलिए कृपया इसे अन्यथा न लेंगे!
दुकान चलाने के धंधे हैं और क्या।
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सुनामी: प्रलय का दूसरा नाम।
चमत्कार दिखाऍं, एक लाख का इनाम पाऍं।
अंक ज्योतिष पर सार्थक चर्चा । सभी तर्क जँचे ।
अपनी अपनी सोच और अपना अपना नजरिया है ... कोई लोग तो किसी भी बात में विश्वास नहीं करते .... वैसे पढने में मज़ा बहुत आता है .. और अगर अपनी फेवर में लिखा हो तो फिर बात ही क्या ...
बहुत अच्छी पोस्ट है ..वैसे कुछ लोंग तो नंबरों से काफी कुछ सही बताते हैं ..लेकिन अंधविश्वास नहीं करना चाहिए ...जिनको वाकई इस विद्या का ज्ञान है तो वो मात्र दिनांक या वर्ष से गणना नहीं करते ..समय आदि को भी महत्त्व देते हैं ...
ज्योतिष विद्या के साथ एक दिक्कत यह है कि उसके लिए जन्म समय का ठीक-ठीक पता होना ज़रूरी होता है। कई लोगों के पास यह जानकारी नहीं होती किंतु भविष्य के प्रति उत्सुकता उनके मन में भी रहती है। संभवतः,अंक ज्योतिष का उद्गम इसलिए।
सामान्य ज्योतिष में,भविष्यफल विस्तृत और लिखित देने-लेने की परम्परा रही है। अंक ज्योतिष में ज्यादातर बातें जबानी होती हैं जो थोड़े समय बाद जातक को भी याद नहीं रह जाता। संभवतः,अंक ज्योतिष का बेतहाशा प्रसार इसलिए।
बहुत अच्छी जानकारी । दिल के बहलाने को गालिब ये खयाल( अंक ज्योतिष )अच्छा है ।
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