सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Monday, October 25, 2010

रंग-बिरंगे दोहे


ख़ाली डिब्बा टीन का, उसमें पहिये चार
हल्का फुल्का आदमी, अहंकार का भार.


लड़के की हो नौकरी, बंगला, पैसा, कार
देते नाम विवाह का, करते देहव्यापार.

हल्ला गुल्ला शोर कर, कुर्सी पर चढ़ जाएँ,
लोगों पर शासन करें और सेवक कहलाएँ.


अपनी अपनी सोच है, अपना अपना काम
मिट्टी की इस देह का, बारिश को है सलाम.


एक अनोखा खेल है, जीवन जिसका नाम,
मरने वाली देह करे, पुख़्ता सब इंतज़ाम.


पाना, खोना, छोड़ना, एक अबूझा खेल
छटपट करती आत्मा, देह बनी अब जेल.

30 comments:

उस्ताद जी said...

3/10

सामान्य पोस्ट
रचना प्रभावित नहीं करती.
दहेज़ का सम्बन्ध आपने देह व्यापार से
स्थापित किया ....???

सुज्ञ said...

चैतन्य जी,

बहुत ही सार्थक, हल्की-फ़ुल्की व्यव्हार भाषा में छिपा है अनुपम भाव।

उस्ताद जी,

कुछ पाठकों को भी मूल्यांकन करने देते और फ़िर आप अंक देते तो आपका मूल्यांकन सार्थक होता।
आपके प्रथमतः इस प्रकार के मूल्याकंन से पाठक दिग्भ्रामित होता है।

जब दहेज महत्वपूर्ण हो जाता है तो रिश्तों को देह व्यपार की संज्ञा मिलती है। इसमें आश्चर्य कैसा ?

अरुण चन्द्र रॉय said...

आज कल दोहे कम ही पढने को मिलते हैं.. लेकिन अपने अच्छे दोहे पढवाए.. शीर्षक से कुछ हलके फुल्के दोहे के अंदाजे से पढ़े लेकिन गंभीर और दार्शनिक दोहे मिले.. जैसे...
"एक अनोखा खेल है, जीवन जिसका नाम,
मरने वाली देह करे, पुख़्ता सब इंतज़ाम."
या फिर
"अपनी अपनी सोच है, अपना अपना काम
मिट्टी की इस देह का, बारिश को है सलाम."
आनद तो आया ही थोड़ी चेतना भी जगी..

दीपक बाबा said...

@ उस्ताद जी, मूल्यांकन ठीक कीजिए..... मैं सुज्ञ के तर्क से प्रभावित हूँ.

चैतन्य जी, हलके फुल्के शब्दों में जीवन दर्शन बढिया लगा ......

निदा फाजली जी की याद दिला दी.

दीपक बाबा said...
This comment has been removed by the author.
उस्ताद जी said...

@ सुज्ञ जी आपकी बात उचित लगी.
मुझे बाद में ही प्रतिक्रिया देनी चाहिए.
आगे से ध्यान रहेगी ये बात. शुक्रिया

shikha varshney said...

सटीक दोहे हैं .
दूसरा वाला खासतौर से बहुत अच्छा लगा.

रचना दीक्षित said...

सभी दोहे अच्छे लगे पर आखिरी वाले दोनों लाजवाब हैं

Satish Saxena said...

शिल्प के बारे में शिल्पज्ञानी जाने मगर मुझे यह कविता दिल से निकली लगी, बेहतरीन सटीक अभिव्यक्ति !

राजेश उत्‍साही said...

स्‍वाद बदलने के लिए धन्‍यवाद।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आखिरी दो दोहे तो कमाल के हैं.... बहुत खूब

प्रवीण पाण्डेय said...

सही व्यंग ठोंका है।

संजय @ मो सम कौन... said...

सभी दोहे अच्छे लगे, अंतिम वाला सबसे ज्यादा।

मनोज कुमार said...

हर दोहा लाजवाब। एक से एक जीवन संदेश। हां मुझे सबसे पसंद यह आया
लड़के की हो नौकरी, बंगला, पैसा, कार
देते नाम विवाह का, करते देहव्यापार.

Apanatva said...

sabhee dohe badiya.......
Ustad jee to mujhe number katne me hee ustad lage......
bhavnao se judna aata nahee.......vaise self appointed ustad hai kursee pakkee hai.........
maine jub pahle inke comments pade bade bhai kee yaad aae ve bhee kafee khichaee karte hai par fir dekha ye to bhavnao ko na samjhte hai na.judte hai....
machanical kaam hai inka............

उम्मतें said...

अहंकार / दहेज / राजनीति और देह...आत्मा से खेल करते दोहे पसन्द आये :)

स्वप्निल तिवारी said...

achhe dohe hain...samajik muddon ..aur jeevasn ki visangatiyon ko pakadte hain...han kuch jagah matraon ka kuch punga hai shayad..bolne me lay theek nahi lag rahi thi ... :(

ZEAL said...

Beautiful couplets , revealing the bitter truths of life.

दिगम्बर नासवा said...

ख़ाली डिब्बा टीन का, उसमें पहिये चार
हल्का फुल्का आदमी, अहंकार का भार.

कमाल के दोहे हैं .... आस पास के माहॉल से निकाले हुवे ... ग़ज़ब ...

S.K said...

bahut badhiya sir

आपका अख्तर खान अकेला said...

slil bhaayi bhut bhut bdiyaa dohe hen bhayi khaan se dimaag men aayi yeh schchaayi or fir alfaazon men unhen pirone ka yeh andaaz mzedar he mubark ho.
slil bhayi aek bat or men aapka the dil se shukr guzar hun jo apne mujhe pdha or usmen glti ke sudhar ke liyen saavchet bhi kiyaa bhayi sie hi dosti or bhaayi chaara khte hen bhut bhut shukriyaa bnda kbhi bhi khidmt men haazir rhegaa. akhtar khan akela kota rajsthan

मनोज कुमार said...

सार्थक दोहे और समय को दर्शाते हुए।

समकालीन डोगरी साहित्य के प्रथम महत्वपूर्ण हस्ताक्षर : श्री नरेन्द्र खजुरिया

स्वप्निल तिवारी said...

Kuch jagah ustaad ji ko punah mulaynkan karne ki jarurat hai... Lagta hai kaam jyada badh gaya hai bas aupchariktavash no baant rahe hain...dohon ke bhav bahut hi adbhut hain...

Dr Xitija Singh said...

saaf shabdon mein kahi gayi gehri baat ... har dohe main

हल्ला गुल्ला शोर कर, कुर्सी पर चढ़ जाएँ,
लोगों पर शासन करें और सेवक कहलाएँ....

bahut khoob...

Coral said...

बहुत सुन्दर रचना ....

आपका मेरे ब्लॉग पर आके टिप्पणी देने के लिए शुक्रिया ... आपके तर्कों का जवाब देने की कोशिश की है ....

M VERMA said...

प्रासंगिक दोहे और सार्थक भी

Anonymous said...

Sorry for my bad english. Thank you so much for your good post. Your post helped me in my college assignment, If you can provide me more details please email me.

'साहिल' said...

पाना, खोना, छोड़ना, एक अबूझा खेल
छटपट करती आत्मा, देह बनी अब जेल.

khoobsurat dohe!

कुमार पलाश said...

मन को छूते दोहे !

मनोज भारती said...

आध्यात्म की चाश्नी में पके सुंदर मनभावन दोहे ...आध्यात्म की दिशा में कुलाचे भरते नजर आते हैं ।

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