सम्वेदना के स्वर

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Monday, November 1, 2010

डंकाधिपति ओ-रामा की अवध यात्रा और दीवाली !


{ इस नाटिका के समस्त पात्र स्थान एव घटनायें काल्पनिक हैं, इसका किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है, यदि ऐसा होता है तो उसे मात्र सयोगं ही समझा जाये। हमारा उद्धेश्य सिर्फ और सिर्फ स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करना है}   

पौराणिक कथाओं से अपने इतिहास को जोड़ने वाली अवध-नगरी में पिछले कई माह से चल रही स्वागत की तैयारियाँ अब अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर रहीं हैं। डंका नगरी से आने वाले चक्रवर्ती सम्राट ओ-रामा के लिये अवध को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है, तरह तरह के आयोजनों की योजनायें हैं, जिन्हें संस्तुति के लिये डंका नगरी को भेजा गया है।

इसी सन्दर्भ में आज अवध-नगरी के राजमहल में एक विशेष सभा का आयोजन किया गया है, जिसमें राजदरबार द्वारा स्वागत समारोह की तैयारियों की समीक्षा की जा रही है. (उल्लेखनीय है कि अवध-नगरी की पंचायत द्वारा दिये गये एक निर्णय के बाद यह राजमहल खड़ाऊँ नरेश के लिए अब मात्र एक तिहाई हिस्से में सिमट कर रह गया है, क्योंकि इसके एक तिहाई हिस्से में दूसरे तरह की प्रार्थनायें होती हैं और शेष एक तिहाई हिस्से में कुश्ती की प्रतियोगिताओं के आयोजन का प्रबन्ध है)

दृश्य 1 :
(पात्र : खड़ाऊ नरेश (मन भरत), राजमाता कैकयी, सुरक्षा मंत्री- लुंगीभरम् , राजकोषाध्यक्ष- बाबू मोशाय. स्थानः राजदरबार . सभा प्रारम्भ करने के लिए खड़ाऊँ नरेश बार राजमाता कैकेयी की ओर देखते हैं, किंतु अनुमति न पाकर चुपचाप गद्दी पर बैठ जाते हैं. कुछ समय पश्चात)

राजमाता : मन-भारत, शुरु हो जाओ पुत्र!
 मन भरत : राजमाता की जय! हे माते! डंकेश्वर के स्वागत की तैयारियों के लिये गठित मंत्री समूह ने सूचित किया है कि सभी तैयारियाँ लगभग पूरी हो चुकी हैं। तैयारी की सूचना और विवरण डंका नगरी को भेजा जा चुका है और वह लोग भी संतुष्ट हैं।
 राजमाता : वत्स! अब सुरक्षा के विषय में पूछो!
मन भरत : हाँ, अब आप बताएँ, लुंगीभरम्! सुरक्षा का प्रबंध कैसा है!
लुंगीभरम् : राजमाता की जय ! जैसी की हमारी परम्परा है, हम अवध नगरी की सुरक्षा के सभी उच्चस्तरीय प्रबन्ध डंका नगरी की सहमति से ही करते हैं. इस बार चुँकि डंकाधिपति स्वयम पधार रहें हैं, तो हमने उनके ठहरने का प्रबन्ध दक्षिण-पश्चिम के मम्बापुर क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ सराय में कराया है. डंकाधिपति का पुष्पक विमान भी वहीं उतरेगा। हमारी सुरक्षा अचूक और अभेद्य है।
राजमाता : वत्स! इससे पहले कि वो सो जाए इस कोषाध्यक्ष से पूछो कि धन की कोई समस्या तो नहीं!
मन भरत : हाँ, अब आप बताएँ, बाबू मोशाय! धन की कोई समस्या तो नहीं.
बाबू मोशाय (थके हुए स्वर में) : राजमाता की जय ! इस सारे आयोजन में धन की कोई कमी न हो इसके सभी प्रबंध किये जा चुके हैं। नगर सेठों को इस आयोजन के बाद डंका नगरी से होने वाले व्यापारिक लाभ की प्रबल आशा है। इस सभा में आने से पहले मैं नगर सेठ सुकेश से विस्तृत व्यापारिक चर्चा करके आया हूँ।
राजमाता: ठीक है! मन भारत, देखना इस बार आयोजन में वो सब न हो जो पिछले “क्रीड़ा-समारोह” के आयोजन में तुम लोगों ने किया था।
(बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये राजमाता अपने अंत:पुर में चली जाती हैं, सारे सभासद तब तक खड़े रहते हैं जब तक राजमाता मंच से प्रस्थान नहीं कर जातीं.)

दृश्य 2 :
 (पात्र : सुरक्षा मंत्री-लुंगीभरम् , गुप्तचर सेवा प्रमुख–चरणदास.  स्थानः लुंगीभरम् का कार्यालय. चरणदास लुंगीभरम् के आगमन पर भूमि पर साष्टांग लेट जाता है.)

लुंगीभरम् (कड़क लहजे में) : चरणदास! दण्डवत होना छोड़ो और सुरक्षा की सूचना दो।
चरणदास : महोदय! सब कुछ दुरुस्त है। हाँ, सर्पपुर के तथाकथित राष्ट्रवादियों ने एक झूठा समाचार फैलाया है।
लुंगीभरम् : क्या किया है उन्होंने अब?
चरणदास : महोदय, सर्पपुर वाले, अवध की भोली भाली जनता को यह कहकर भरमा रहे हैं कि हमारे राज अतिथि वास्तव में डंकेश्वर ओ-रामा नहीं वरन ओ-रावना है, जो एक मायावी है। इसी मायावी ने असली ओ-रामा को कैद किया हुआ है और अब स्वयम ओ-रामा के वेश में विश्वभ्रमण कर सबको उनके देश को स्वर्ण नगरी बना देने का लालच दे रहा है।
लुंगीभरम् : कोई भी इस प्रकार मिथ्या समाचार फैलाता दिखे तो डाल दो कारावास में और परिस्थिति शांतिपूर्ण बनाओ। अवध में वैसे भी मिथ्याचारियों कि बहुतायत होती जा रही है.
चरणदास : किंतु महाराज, किस दोष में ऐसे लोगों को कारावास दिया जाए.
लुंगीभरम् : अब यह भी मुझे ही बताना पड़ेगा। कुछ भी दोष लगाओ।बस वो कारावास में होने चाहिये.
(चरणदास एक कुटिल मुस्कान बिखेरता प्रस्थान कर जाता है और लुंगीभरम् चिंतित मुद्र में सिर झुकाए हाथ पीछे बाँधे दूसरी ओर से प्रस्थान करता है.)

दृश्य 3 :
(पात्र : डंका नगरी के चक्रवर्ती सम्राट ओ-रामा और अवध का समस्त राज दरबार और गणमान्य व्यक्ति. स्थानः राजप्रासाद का विशाल प्रांगण.)

सारी अवध नगरी में त्यौहार का वातावरण सा बन गया है. सारी जनता सजधज कर नवीन एवम रंगीन वस्त्र धारण कर राज अतिथि डंकाधिपति ओरामा के स्वागत में एकत्र है. अपार जनसमूह एक मानव बाढ़ सदृश दृश्य उपस्थित कर रहा है, जैसे जनता रूपी सरिता अपने समस्त तटबंध को तोड़कर इस विशाल प्रांगण में बह रही है.

रह रहकर डंकेश्वर महाराज ओरामा की जयघोष भी सुनाई पड़ जाती है और ऐसा प्रतीत होता है मानो इस जयघोष से स्वर्ग स्थित देवराज इंद्र का भी सिंहासन डोलने लगेगा. भीड़ में गुप्तचर प्रमुख चरणदास एक हाथ में रेशमी थैली लिए जनसाधारण के मध्य भीड़ का बोध कराता है. वैसी ही रेशमी थैली लिये कई और व्यक्ति जो सम्भवतः गुप्तचर विभाग से सम्बंध रखते होंगे, भी भीड़ में फैले हैं. चरणदास तथा अन्य व्यक्ति रह रहकर थैली से कुछ स्वर्ण मुद्राएँ निकालकर आस पास खड़ी जनता में वितरित कर रहे हैं.जिस व्यक्ति के हाथ में मुद्राएँ आती हैं वह उच्चस्वर में डंकेश्वर ओरामा की जय का उद्घोष करता है और समस्त जनता उसके पीछे पीछे यही दोहराती है.

मंच पर राजमाता कैकेयी डंकाधिपति के साथ बैठी हैं और अन्य सभासद तथा खड़ाऊँ नरेश मनभरत  दूसरी पंक्ति में विराजमान हैं. साथ ही कुछ और गणमान्य नागरिक मंच की शोभा बढा रहे हैं,जिनकी अगुआई प्रसिद्ध व्यापारी नवयुवक सुकेश कर रहे हैं और पेट की गोलाई से यह भी प्रतीत होता है कि उनके साथ अन्य व्यापारी मण्डल के सदस्य हैं.

सभी गण्मान्य नागरिकों के हाथ में भिक्षापात्र सा एक पात्र दिखाई देता है.
डंकाधिपति चक्रवर्ती सम्राट ओ-रामा की आरती उतारने के बाद, सुन्दर अवध-बालायें स्वागत गान गानें लगती है :-

अंगना पधारो हे ओरामा, प्रभु तुम हमरे अंगना में आज पधारो.
कब से खड़े हैं हम स्वागत में तुमरे, सज गई है नगरी अबधिया
दीपक में तेल नाहिं बलब जलाए हैं, पानी से बनी है ये बिजुरिया.
परमानु बिजली कब लईहो ओरामा तुम, खुसहाल हुइहै ई देस
तुमही से रोसनी है, तुमही से जगमग, राजा हैं भिखारियों के भेस.
आओ देखो अबध नगरिया का हाल तुम, महल में कइसे रहोगे
तीन टुकरो भये महल के हमरे जो, तुम कईसे कस्ट सहोगे.
सरजु के तीर तो बिरान भयो बस तुम मान लो ई पंचन की राय
तुमरे निवास बदे देखो खाली कर दी है हमने ये मम्बापुर सराय.
आस के पड़ोस के सब राक्षस आतंकियों ने जीना कर रखा है मोहाल
राजकोष खोल दिया, और है बिछा देखो सैनिकों मसीनों का ये जाल.
कोष खाली हो गया तो चिंता नहीं है हमें, हमपे है किरपा तुम्हारो
अंगना पधारो हे ओरामा प्रभु तुम हमरे अंगना में आज पधारो.

इधर उधर की औपचारिकताओं के बाद, चक्रवर्ती सम्राट ओ-रामा का समापन भाषण :

मेरे प्यारे अवधवासियों !

आपका कंट्री का ट्रैडिशन रहा है कि बाहर से आकर बिज़नेस करने वाला को आप ईस्ट इण्डिया कंपनी का टाईम से एनकरेज करता है. हम भी अपको एक मौका देता है. आप न्यूक्लियर पावर का मतलब जमीन का अंदर क्रैकर्स जलाने को समझता है. हम आपको बताएगा कि इस पावर से आप बिजली बना सकता है. आपका कंट्री में टी20, डे नाइट ओडीआई, कॉमनवेल्थ गेम्स, ओलिम्पिक, एशियाड जैसा गेम्स होता है, जिसका वास्ते आपको बिजली चाहिए. हमरा कंट्री आपको विश्वास दिलाता है कि हम आपको युरेनियम का सप्लाई करेगा और पावर हाउस लगाकर देगा.
(भीड़ में चरणदास फिर मुद्राएँ वितरित करता है और ओरामा की जय के नारे सुनाई देने लगते हैं)

आप हमको अपना कंट्री में मिलिटरी बेस बनाने देगा तो हम आपका कंट्री का दुश्मन राक्षस से आपको सिक्योरिटी देगा. जैसा हमने इराक्षस देश के साथ किया. हमारा देश तो बेगिनिंग से भाई चारा का नारा और शांति का नारा लगाता आया है. हम आपका देश में भी शांति लाएगा.

हमारा कंट्री को गोल्डेन कंट्री बोलता है. हमारा साथ तुमारा कंट्री भी सोना का हो जाएगा. हम इधर में नया बिज़्नेस लाएगा, उसमें हम अपना मनी लगाएगा और तुमारा लोग को काम भी देगा. तुमारा कंट्री सोना का देस हो जाएगा.

अबी हमारा जाने का टाइम हो गया है. हम मनभरत को बोला है कि अपना राजमाता से पूछकर हमको जब बोलेगा हम डील के लिए रेडी है.

(राजमाता के संकेत पर मनभरत खड़ा होकर ओरामा के सम्मुख झुककर अभिवादन करता है. ओरामा बिना उसको देखे कुछ संधिपत्र निकालता है जिनपर मनभरत अपनी मुद्रा अंकित कर देता है. पार्श्व में ओरामा की जयकार के मध्य मंच से सभी गणमान्य व्यक्तियों का प्रस्थान.)

18 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

लघु नाटिका नहीं यह दीर्घ कटाक्ष है।

उम्मतें said...

पोलिटिकली कहूं तो इस मुद्दे पर ,लेफ्ट को छोड़ कर सारे दल ओरामा से डील के लिए सहमत थे ! तो किसी दृश्यबंध में उनको भी रोल मिलने चाहिये थे और काले झंडे लहराते लोगों के दृश्यबंध का संकेत मैंने दे ही दिया है :)
बहरहाल बढ़िया व्यंग रच दिया आपने ! मेरी टिप्पणी मे उल्लिखित लेफ्ट शब्द आपके डिस्क्लेमर की रौशनी में पढ़ा जाये :)

राजेश उत्‍साही said...

कल्‍पना के घोड़े दौड़ाने के लिए बहुत मेहनत की गई है लगती। मेहनत सफल है।

kshama said...

Kya zabardast kataksh hai! Harek shabd,harek pankti apni,apni jagah jaise gadhe gayen hon!

कुमार पलाश said...

करारा व्यंग्य है यह ! लघु नाटिका के माध्यम से बृहत् सन्देश !

शिवम् मिश्रा said...

मान गए साहब .... बहुत ज़ोरदार व्यंग्य है ! बधाइयाँ !

संजय @ मो सम कौन... said...

अब ग्लैमर ओ-रामा का है या डंका का, मालूम नहीं, लेकिन ऐसा कोई सभासद नहीं जो लालायित न हो, उसका एक टच पाने के लिये।
मन भारत तो बहुत भोले हैं, खड़ाऊं संभालन शासन प्रणाली के लिये एकदम उपयुक्त। राजमाता का त्याग देखिये, देश छोड़ा, सगे संबंधी छोड़े तब ही तो आकर इस देश की बागडोर बैकडोर से संभाल रही हैं। आधुनिक काल की कथा है तो राजमाता त्याग की कीमत पूरी वसूलेंगी।
ओ-रामा का पहले पंचनद प्रदेश में विचरण का भी कार्यक्रम था। उसके कैंसिल होने की वजह भी कुछ जरूर रही होगी। कहीं वो डर तो नहीं था कि भौगोलिक रूप से अपने परम प्रिय मित्रदेश के नजदीक जाने पर भाव कुछ और ही रूप न ले लें?

मनोज कुमार said...

व्यंग्य में बहुत बड़ी बात कह गए हैं।
बधाई।

मनोज कुमार said...

व्यंग्य में बहुत बड़ी बात कह गए हैं।
बधाई।

मनोज कुमार said...

व्यंग्य में बहुत बड़ी बात कह गए हैं।
बधाई।

VICHAAR SHOONYA said...

आपके लेखन का ये अंदाज मुझे बहुत पसंद है. पिछली बार अपने CID सीरियल पर जो पेरोडी लिखी थी ये उस विधा का ही विस्तार है. बहुत बढ़िया.

दिगम्बर नासवा said...

भाई गज़ब का व्यंग है .... किसी को नहीं छोड़ा है आपने ... जवाब नहीं पात्रों को घड़ने में आपका .... हमें तो राज-माता ने बहुत प्रभावित किया ... बहुत त्यागमय है .... बाकी सभी के चरित्र भी आस पास ही नज़र आते हैं ....

Apanatva said...

asardar vyang........patro ko chitrankan gazab kaa raha......

दीपक बाबा said...

@खड़ाऊ नरेश

क्या कोई रति दाखिल कर के पता किया जा सकता है की
राजमाता ने अपना घर परिवार और देश छोड़ने के बाद कितने कृत्या ऐसे किया जो लाभ की श्रेणी में नहीं आते ?
इस देश (उनके लिए विदेश) में राजमाता ने जो त्याग किये .... कितनी शताब्दियों तक ये देश उसकी पूर्ति करेगा.......

मैं मान रहा हूँ की आपकी बेहतरीन नाटिका से इन प्रश्नों को उत्थाने का कोई उचित्य नहीं है...... पर सभी विद्जन उपस्तिथ हैं - और मैं आदत से मजबूर.

हाँ एक बात और.........
क्या विश्व में सिर्फ भारत देश ही ऐसा है जहाँ @खड़ाऊ नरेश होते हैं.?

दीपक बाबा said...

baap re ...... bhari mistake ho gaya..

above comments mein

@क्या कोई रति दाखिल

क्या कोई RTI दाखिल
parha jaaye

उपेन्द्र नाथ said...

bahoot hi sunder vyang natika. bahoot kuchh kahti huyee.

ZEAL said...

.

बढ़िया कटाक्ष है। आपकी मेहनत को नमन ।

.

कविता रावत said...

vartmaan pradidrashya ka bade hi sangathit dhang se vratchitra prastut kar aapne ek katu yatharth ka darshan karaya hai wah chintankari hai..
bahut achha laga badi mehanat lagi hogi.. kafi lamba natak hai lekin rochak hone saath saath gambhirta saaf drishtigochar ho rahi thi....
bahut shubhkamnayne

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