एक बड़ा ही प्रचलित मुहावरा है हमारे समाज में कि दुनिया उगते सूरज को सलाम करती है. इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति सफल है अथवा उच्चपदस्थ है, उसे सब पूजते हैं, जिस प्रकार उठते सूर्य को. किंतु बिहार एक ऐसा प्रदेश है जहाँ अस्त होते हुये सूर्य की पूजा की जाती है. अपने ढंग की एक अनोखी पूजा और शायद उस कहावत का अपवाद. यह पूजा बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ पूजा के नाम से जानी जाती है. दीवाली के चौथे दिन से शुरू होकर, षष्ठी को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद, सप्तमी के दिन उदित सूर्य को अर्घ्य देकर पारण करने के साथ, व्रत की पूर्णाहुति होती है.
आज भी बिहार में किसी नवजात शिशु के बारे में यह माना जाता है कि छठी के दिन छठी माता उस शिशु का भाग्य लिखती हैं. और छठी माता को प्रसन्न करने से अधिक हर माता अपने बच्चे की सुख और समृद्धि के लिये सूर्य को साक्षी मानकर इस व्रत का पालन करती हैं. इसीलिए इस पूजा को सूर्यषष्ठी व्रत भी कहते हैं.
पर्व का प्रारम्भ चतुर्थी के दिन से हो जाता है, जब व्रती, पुरुष या महिला, नहा धोकर स्वयम अपने हाथ से चावल, लौकी डालकर चने की दाल और आँवले की चटनी आदि बनाकर, भोजन ग्रहण करते हैं और उसके बाद ही बाकी घर के लोग खाना खाते हैं. आम तौर पर जिन घरों में पूजा होती है वहाँ इस दिन के बाद से सात्विक भोजन बनता है.
पंचमी के दिन व्रती सारे दिन का उपवास रखकर,संध्या वेला में स्नान कर लकड़ी जलाकर प्रसाद बनाते हैं. यह प्रसाद बिहार के अलग अलग हिस्सों में गुड़ की खीर या चावल दाल होता है. प्रसाद बनाकर पाँच अलग अलग मिट्टी के पात्र में रखकर , दीप जलाकर देवी की आराधना करके उनको आमंत्रित किया जाता है. पूजा के बाद, व्रती एकांत में प्रसाद ग्रहण करते हैं और शेष प्रसाद समस्त परिवार और आस पड़ोस में वितरित कर दिया जाता है. चंद्रोदय से पूर्व व्रतीको जल ग्रहण करने की अनुमति है, उसके उपरांत सप्तमी से पूर्व अन्न और जल वर्जित कहा गया है.
षष्ठी के दिन पुनः प्रसाद बनाने के काम में सारे परिवारकी महिलाएँ सहयोग करती हैं. यह प्रसाद आटे और गुड़ के मिश्रण से बना घी में पगा हुआ एक पकवान है जिसे स्थानीय बोली में ठेकुआ कहा जाता है. सम्भवतः गुड़ और आटे के मिश्रण को गूँधकर जो लोई बनती है, उसे हथेली से ठोककर घी में छान लिया जाता है. इसी ठोंकने की क्रिया से ही इस पकवान का नाम ठेकुआ पड़ा होगा. प्रसाद तैयार करने वाली महिलाएँ उपवास करके प्रसाद तैयार करती हैं.इसलिए इस काम में महिलाएँ समूह बनाकर सहयोग देती हैं, ताकि एक समूह जब भोजन करने जाए तो दूसरा समूह उनकी जगह ले सके.
संध्या वेला में सारा प्रसाद, जिसमें ठेकुआ के अलावा नारियल, केला अदि कई फल होते हैं, एक सूप में सजा दिए जाते हैं और इसी तरह कई सूपों में सजा प्रसाद एक बड़े से टोकरे, जिसे दौरा कहा जाता है, में लाल या पीले कपड़े में बाँधकर रख दिया जाता है. यह दौरा सिर पर उठाकर लोग किसी पोखर, नदी, तालाब या कोई जलाशय आदि के किनारे ले जाते हैं. इतनी श्रद्धा जुड़ी है इस पर्व के साथ कि हर कोई उस दौरे को सिर पर उठाकर अपना सहयोग देना और छठी माता के प्रति अपनी उपासना व्यक्त करना चाहता है. सारी औरतें व्रती के साथ साथ गीत गाती हुई चलती हैं. हर धार्मिक गीत की तरह इसमें भी छठ माता और सूर्य्य देव कि महिमा गाई जाती है. इन गीतों की सबसे बड़ी विशेषता इनकी धुन है. यह एक विशेष धुन है जिसे दूर से भी सुनकर, बिना गीत के शब्दों को सुने यह पता चल जाता है कि यह छठ का गीत है
नदी में जाकर व्रती स्नान करते हैं और उन्हीं गीले वस्त्रों में कमर तक नदी में खड़े होकर हाथ में प्रसाद से भरे सूप को लेकर वहीं जल में पाँच बार एक स्थान पर परिक्रमा करते हैं और सभी परिजन जल से अर्घ्य देते हैं. अर्घ्य देते समय यह ध्यान रखा जाता है पूरी प्रक्रिया सूर्यास्त के पूर्व सम्पन्न हो जाए. और इस प्रकार षष्ठी व्रत का समापन होता है, किंतु छठ पूजा के लिए अभी एक रात और शेष है.
सप्तमी के दिन, सुर्योदय से पूर्व उठकर सारे सूपों में प्रसाद पुनः सजाए जाते हैं तथा उनमें नए दीप रखे जाते हैं. एक बार फिर पिछले दिन की सारी प्रक्रिया दोहराई जाती है, मात्र थोड़े से अंतर के साथ. इस बार व्रती का मुख पश्चिम दिशा के स्थान पर पूर्व की ओर होता है, क्योंकि आज उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देना है और वो भी दूध का अर्घ्य. पूरी प्रक्रिया दोहरा लेने के बाद व्रती प्रसाद खाकर और जल अथवा शर्बत आदि पीकर अपना व्रत तोड़ता है. इस प्रकार छठ पूजा सम्पन्न होती है.
मान्यताओं के अनुसार पूजा विधियों में थोड़ा बहुत परिवर्तन होता रहता है. कई बार स्थान एवं पारिवारिक परम्पराओं के कारण भी परिवर्तन देखने में आते हैं. किंतु एक बात पूरी पूजा के दौरान देखने में आती है और वो है पवित्रता. सारा शहर और लोग इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि किसी भी कारण से पूजा या उससे जुड़ी कोई वस्तु अपवित्र न हो.
एक माता अपने शिशु को कोख में नौ महीने सुरक्षा प्रदान कर जीवन देती है और इस जीवन की रक्षा के लिए इतने कष्ट सहकर व्रत और उपवास रखती है. एक माता की पुकार छठ माता से. आस्था की पराकाष्ठा का एक अद्भुत उदाहरण है यह पर्व, छठ पूजा!
छठ का एक मधुर गीत आप सबके लिये :
29 comments:
Chhath pooja ke bare me suna tha,aaj pooree jaankaaree mili.
बहुत सुन्दर छठ की छटा का अनुपम आलेख
मनभावन चित्र ...आभार
दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ
छठ का पर्व मुझे भी देखने का सौभाग्य मिला है ,जब हम टाटानगर के पास घाटशिला जगह पर थे .....चार साल मैंने भी नदी तक जाने में हिस्सा लिया है ...सूर्य के उगने और अस्त होने के वक्त नदी पर निराली छटा रहती है ...खूब ठेकुए खाए हैं ...आज तो याद ही दिला दी सबकी ...
chhath...ek bihari hone ke naate se
mujhe bachpan se is prab ki mahtta ka andaza lag gaya tha..aaj bhi chhath aane par maa ghar me mansahari khane par prtibandh laga deti hay kayon ki hamare bilding me lagbhag sabhi garon me chhat puja hota hay..sundar aalekh
ये उत्सव हमारे अस्तित्व की पहचान हैं ! इस मशहूर त्यौहार के बारे में इतना रुचिकर वर्णन पहली बार पढ़ा !..आभार
नमस्कार,
बहुत दिनों बाद आई आपके इस ब्लॉग पर और आते ही ये छट पर्व पर लेख पढ़ कर अच्छा लगा ये पर्व मैंने भी देखा है और वो टेस्टी ठेकुआ भी खाया है छट पर्व की इतनी विस्तार पूर्वक चर्चा अच्छी रही और दीवाली की देर से शुभकामनाये !
आ रहा हूं बड़े भाई, बस घर से निकलने ही वाला हूं, हावड़ा स्टेशन के लिए ...
बढिया लिखे हैं...
काफी सुना था छत पूजा के बारे में .विस्तृत जानकारी दी आपने .आभार.
छठ के बारे में पहले आधी अधूरी जानकारी थी। आज पूरी कहानी तफ्शील से पढ़कर जानकारी में इजाफा हो गया। धन्यवाद। शायद इन पुरानी भारतीय साँस्कृतिक परंपराओं के बारे में पढ़कर हमारे आज के तथाकथित भद्रजन पाश्चात्य सभ्यता के भ्रमजाल से निकलकर अपनी विरासत की ओर लौटें और इन छोटी-छोटी किन्तु समृद्ध परंपराओं में माँ की ममता व स्नेह तथा दादी-मामी-चाची के लाड़ को पहचान सकें।
सूर्य पूजा का पूरा विधि विधान और संगठित रूप बिहार के अन्यत्र कहीं देखा सुना नहीं !
छठ के बारे में विस्तार से बताये आप . ..बहुत अच्छी जानकारी.....
छठ के बारे में प्यारा आलेख.... विस्तार से बताया आभार
छठ पूजा पर एक यादगार आलेख...छठ पूजा के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी देता आलेख पढ़ कर यूँ लगा मानों संपूर्ण पूजा का साक्षी बन गया हूँ मैं । बधाई इस जानकारीपूर्ण आलेख के लिए ।
छठ पूजा पर जानकारीपूर्ण आलेख.
छठ के बारे में एक साथ इतनी जानकारी एक जगह पढ़कर अच्छा लगा।
अच्छा लगा छठ पूजा के बारे में जानना ज्ञानवर्धक पोस्ट
इस देश के अलग अलग हिस्सों की संस्कृति, परंपरायें हमें बहुत कुछ सिखा सकती हैं अगर हम सीखना चाहें। हमारे अपने परिवार में किसी जन्म के बाद पहली पूजा या पहला उत्सव जन्म से छठी रात को होता है। बहुत डिटेल नहीं मालूम लेकिन षष्ठी माता को प्रसन्न करने या आभार व्यक्त करने का ही तरीका लगता है। बिहार और आसपास इसे जनरलाईज करके प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
ट्रेन में एक सहयात्री था जो मिथिला का रहने वाला था। चलन के मुताबिक बाकी लोग सिर्फ़ मजाक करते थे, यही दुनिया से उलट चलने की बात कहकर छेड़ते थे लेकिन जब मैंने उससे तफ़सील में इस त्यौहार के बारे में जाना और यह कहा कि यार, हमें तो इनका अहसानमंद होना चाहिये कि हम सबके हिस्से का आभार भी ये सपरिवार और इतने कठिन व्रत रखकर चुका रहे हैं तो माहौल एकदम से बदल गया। उस मित्र को देखने का नजरिया बदल गया साथियों का, और हमें(सबको) इनाम में खाने को मिले कई व्यंजन, जिनके नाम नहीं मालूम थे लेकिन थे प्रेम, स्नेह में पगे हुये।
आपके इस लेख से बहुत कुछ और जानने को मिला। गीत बहुत ही कर्णप्रिय है। (वैसा ईनाम जरूर चाहिये आपसे भी, वसूलेंगे आपसे भी कभी न कभी, हा हा हा)
अहा हा...इतनी डिटेल जानकारी ,आप द्वय भी कमाल हैं ! मुझे तो त्योहारों तक के पूरे नाम याद नहीं रह पाते अगर कैलेंडर ना हो तो सब व्यर्थ ! पर आप लोगों ने जिस बारीकी से छठ का विवरण दिया , काबिल-ए-तारीफ़ है !
हमारे आफिस में एक यादव जी हैं, बलिया के रहने वाले। वे हर साल छठ पूजा के बाद प्रसाद के रूप में ढेर सारे फल और पकवान लेकर आफिस आते हैं। इसीलिए हमें बड़ी शिददत से इसका इंतजार रहता है।
:)
आपको छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाऍं।
छठ पर लिखा देख कर रुका नहीं गया,पर लिखने बैठा तो लिखा भी नहीं गया...
हाँ गँगा गँगा हो गया मन...और माँ के बनाये ठेकुए याद हो आए...(ओह्ह!! भाई घर से ले आया है, कमरे पर हैं अब भी.)
किसी छठ शायद फिर जा सकूँ गँगा-तीर. अभी तो गाना ही सुनता हूँ.
Chhath puja ke bare mein puri jankari mili. Chhath maiyya apko humesa khush rakhey.
छठ के प्रति श्रद्धा का भाव, मैंने अपने दो वर्षों के कार्यकाल में देखा।
छठ पूजा की विस्तृत जानकारी देने के लिए आभार।
बहुत ही बढ़िया ढंग से अपने छठ पर्व की जानकारी दी है. पढ़कर बहुत अच्छा लगा. इसके लिए आपका धन्यवाद.
सूर्यषष्ठी पर यह अनुपम लेखन छटा, मनन करने योग्य है।
पूरा छठ अनुष्ठान चित्रों के माध्यम से मुखारित हो उठा है।
छठ का सुन्दर और मधुर गीत सुनवाने के लिए हार्दिक धन्यवाद.विशेष रूप से मेरी श्रीमती जी को एक अरसे बाद अपनी भाषा का गीत सुन कर बेहद आनंदानुभूति हुयी.बहुत -बहुत आभार.
पावन छठ पर्व के बारे में इतना स्पष्ट और विस्तृत विवरण पढकर साक्षात देखने जैसी पवित्र अनुभूति हुई . आपको इस पावन पर्व की हार्दिक बधाई . ठेकुआ को हमारी तरफ मसकवां कहते हैं यानी हथेलियों के बीच मसककर (दबा कर)बनाया गया .घी गुड और आटे से बना यह व्यंजन सचमुच बहुत स्वादिष्ट होता है ।
पावन छठ पर्व के बारे में इतना स्पष्ट और विस्तृत विवरण पढकर साक्षात देखने जैसी पवित्र अनुभूति हुई . आपको इस पावन पर्व की हार्दिक बधाई . ठेकुआ को हमारी तरफ मसकवां कहते हैं यानी हथेलियों के बीच मसककर (दबा कर)बनाया गया .घी गुड और आटे से बना यह व्यंजन सचमुच बहुत स्वादिष्ट होता है ।
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