सन 1975 के पहले तो सब यही सोचते थे कि एक सिक्का हवा में उछाला जाए तो उसके ‘चित्’ या ‘पट’ आने की सम्भावना 50% है यानि आधी आधी. लेकिन 1975 की फिल्म शोले ने तो उस सम्भावना में भी नई सम्भावनाएँ जगा दीं, अगर सिक्का किनारे पर खड़ा हो जाए… फिर तो न ‘चित्’ न ‘पट’… और कहीं सिक्का दोनों तरफ से एक सा हुआ तो 100% सम्भावना है कि ‘पट’ ही आएगा.
इधर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस विज्ञान में महारत हासिल कर ली है. एक से बढकर एक आँकड़े और उनसे निकाले गए नतीजे इस तरह परोस रहे हैं जैसे फ़ायदा न हो तो पैसे वापिस. कौन सी पार्टी चुनाव में आगे रहेगी, कौन अपराधी है, किसे सज़ा मिलनी चाहिए, देश की नीति और दिशा कैसी होनी चहिए वगैरह वगैरह... लब्बो लुआब ये कि हर मर्ज़ का ईलाज है हक़ीम लुक़्मान के पास... और गोली सिर्फ एक … आँकड़े, यहाँ वहाँ से इकट्ठा किए हुए. इस थेरेपी का नाम दिया “ओपिनियन पोल” और चुनाव के संदर्भ में “एक्ज़िट पोल”.
इलेक़्ट्रोनिक मीडिया के इसी भ्रामक और निहित स्वार्थ द्वारा प्रायोजित “ओपिनियन पोल” के कारण पिछ्ले लोक-सभा चुनाव में चुनाव आयोग ने चुनाव के दौरान “एक्ज़िट पोल” या “ओपिनियन पोल” को प्रतिबन्धित कर दिया था. यह प्रतिबन्ध सिद्ध करता है कि इन हथकंडों के द्वारा इलेक्ट्रोनिक मीडिया लोगों के ओपिनियन को प्रभावित करने की स्थिती मे रह्ता है और यह बात भारत सरकार और चुनाव आयोग दोनों मानते है.
इसी ऋंखला में एक नई कड़ी है समाचर मनोरंजन चैनेलों द्वारा किए जाने वाले SMS पोल. देश दुनिया की बड़ी से बड़ी समस्या का कारण और निदान, आधे घण्टे के प्रोग्राम में नेता और जनताके सामने. दूसरे शब्दों में, ये समाचर मनोरंजन चैनेल सम-समायिक विषयों के कार्यक्रमों के दौरान SMS पोल कराते हैं. दर्शकों को बताया यह जाता है कि कार्यक्रम के दौरान इतने प्रतिशत SMS द्वारा जनता ने अपनी राय ज़ाहिर की. कार्यक्रमों के अंत में, इन SMS पोल मे हां या नहीं का प्रतिशत बता कर कार्यक्रम का एंकर, उस विषय पर देश की राय की घोषणा भी कर देता है.
जहाँ तक विश्वस्नीयता का सवाल है, इन चैनलों की तरह, इन SMS पोल की विश्वसनीयता भी खोखली है. NDTV के न्यूज़ पाइंट कार्यक्रम के एंकर अभिज्ञान प्रकाश तो कार्यक्रम शुरू होते ही हां या नहीं का प्रतिशत बताते है. यह प्रतिशत कार्यक्रम के दौरान आये SMS के साथ बदलते हुए, कार्यक्रम के अंत तक एकदम बदल जाता है.
अब अगर इस पूरी प्रक्रिया का सतही विश्लेषण करें तो यह पता चलता है कि कार्यक्रम की लोकप्रियता का आलम ये है कि कार्यक्रम के शुरू होने से पहले ही लोग, सिर्फ चैनल पर दिखाई जाने वाली स्क्रोल लाइन को पढकर ही, दनादन SMS दागने लगते हैं! और परिचर्चा में भाग लेने वाले महापुरुषों की अमृत वाणी से प्रभावित होकर कार्यक्रम के दौरान भी सिर्फ और सिर्फ SMS ही करते रहते हैं. और अंत में एंकर के प्रभावशाली व्यक्तित्व से, उसके देश के प्रति उत्तरदायित्व बोध से, महापुरुषों के चिंता व्यक्त करने तथा उनकी समस्या के प्रति सोच से प्रभावित होकर देश के लोग अपना फैसला बता देते हैं, जो कभी कभी उनकी पूर्व धारणा या पूर्वाग्रह से अलग होता है. क्या बात है! वॉट ऐन आइडिया सर जी!!
क्या किसीने किसी एल्क्ट्रोनिक मीडिया पत्रकार से ये सवाल पूछने का साहस नहीं किया कि इस तरह के SMS पोल में ये क्यों नहीं बताया जाता कि:
क) कुल प्राप्त SMS की संख्या कितनी थी?
ख) एक मोबाइल नम्बर से एक से ज़्यादा प्राप्त हुए SMS मान्य होते हैं या नहीं? (यदि हां तो क्यों?)
ग) क़्या चैनल से जुड़े लोगों को इस SMS पोल मे भाग लेने से वंचित किया गया है या नहीं?
(वे तो वैसे भी भाग नहीं लेते होंगे … क्यों पैसे बरबाद करें...उनको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त)
घ) देश के किन किन भागों से कितने SMS प्राप्त हुए?
मान लीजिये कि “मीडिया बकवास परोसता है?” इस विषय पर मात्र 5 SMS प्राप्त हुए जिसमे 3 ‘हां’ और 2 ‘नहीं’ हैं (जबकि 2 “नहीं” वाले SMS चैनेल ने स्वयं भेजे हैं) तो “मीडिया बकवास परोसता है” इस विषय पर देश की राय “हां” मे होगी - 60%. बस हो गया फ़ैसला, 5 लोगों ने 125 करोड़ लोगों की राय जता दी.
अब अगर हम कहें कि SMS पोल के परिणामों के साथ उन प्रश्नों के उत्तर भी दिए जाएँ जो हमने ऊपर पूछे हैं, तो SMS पोल की पोल खुल जायेगी! परंतु यह बताकर ख़ुद समाचार व्यापारी समाचार का धन्धा क्यों मन्दा करना चाहेगें ?
14 comments:
सही कहा आपने !
भारत का अधिकांश मीडिया-तंत्र, सत्ता-तंत्र तथा उधोग-जगत के भ्रष्टो के साथ मिलकर, विज्ञापनो की मलाई चाट रहा है, इस कारण इसने अब चोर-डकैतो पर भौकंना बन्द कर दिया है और उनसे मिलने वाले टुकडों को पाकर दुम हिलाता फिरता है.
इनका सब कुछ प्रायोजित है, खबर से लेकर इनकी पतलून तक सब कुछ.
Yah bat waqayi sach hai ki, pahale log akhbaar me chhapi har khabar ko 'saty' maan lete the, ab ilectronic medea gaizimmedar hoke bhi bhagwaan ban gaya hai
सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है।
यह सब मीडिया चैनल और मोबाइल कम्पनियों की आपसी साँठगाँठ है । दोनों ही आम आदमी का पैसा छीन रहे हैं ।
कैसे आम आदमी के मन को इन दोनों ने गुलाम बना लिया है और हमारी सरकार तो चाहती ही यह है कि व्यक्ति का कोई स्वतंत्र विचार न हो । भीड़ का वोट पाना अधिक आसान है, एक स्वतंत्र व्यक्ति के वोट से ।
अऊर एगो बतिया त लिखबे नहीं किए हैं कि ई वाला एसेमेस बड़ी महंगा भी होता है... हमरा बहुते पैसा डूबा है ई चक्कर में... अऊर एसेमेस का सब पैसवा भी दुनो मिल कर बंदरबाँट कर लेता है सब चैनेल्वो वाला अऊर मोबाइल्वा वाला... बाकी ई सब लिखकर आप का महात्मा बनने का बिचार रखते हैं... कि खाली झुठमुठ का पब्लिसीटी खोज रहे हैं...
सही विश्लेषण है .... पर आज बस मीडीया का बोलबाला है ... जो ये कहता है वो ही सच ......
digambar naswa ji ki baat se bilkkul sahamat hun ye kathan bilkul satya hai ki aaj jo kuchh bhi meediya bolata log usi ki rah pakad lete hain
poonam
Sach kaha aapne aaj media ka hi bolbala har taraf nazar aata hai...
Achhi prastuti..
मीडिया जो चाहे दिखा दे ...जनता को खुद सोचना चाहिए...हर चैनल पर रीयल्टी शो दिखाए जाते हैं और जनता से वोट मांगे जाते हैं....बेवकूफ बनाने का एक जरिया मात्र है....
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ और मीडिया के बेमेल गठबंधन का कमाल है की हर कोई लुट रहा है.
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"शब्द-शिखर" पर इस बार गुड़िया (doll) की दुनिया !
kyon sms pol ki pol kholne पर tule हैं .......!!
लगे रहिये आपका प्रयास जरूर रंग लाएगा
वैसे बिहारी बाबू ने भी बड़े पते का सवाल उठाया है
आपने तो sms की पोल खोल दी ......वैसे ये sms सिर्फ trp रेट करने का जरिया है .....बाकि सच्चाई तो आपने बयां कर दिया
janab ye to apne ek pahlu bataya
in sms se inki income kitni hoti hai ye bhi gaur karne vala hai
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