सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

जिसमें भाव रस और ताल का प्रतीक आम आदमी का भा-- बसता है.
सम्वेदनाएँ...जो कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, राजनीति आदि के माध्यम से अभिव्यक्त होती हैं, आम आदमी के मन, जीवन और सरोकार से होकर गुज़रती हैं तथा तलाशती हैं उस भारत को, जो निरंतर लड़ रहा है अपने अस्तित्व की लड़ाई.....

Friday, July 23, 2010

गुमशुदा ब्लॉगर्स की तलाश

दिन के आठ घंटे अगर सोने के निकाल दें तो हम अपने लिए सोलह घंटों का समय पाते हैं. लेकिन इन सोलह घंटों में,अगर रूटीन कामों के तीन चार घंटे और परिवार के साथ बिताए गए समय निकाल दिए जाएँ, तो सबसे ज़्याद वक़्त हम अपने ऑफिस में बिताते हैं. जितना हम अपने परिवार के बारे में नहीं जानते, उससे कहीं ज़्यादा हमें अपने साथ काम करने वाले लोगों की जानकारी होती है. शर्मा जी अपनी लड़की की शादी को लेकर चिंतित रहते हैं, गुप्ता जी का लड़का बारहवीं में 97% नम्बर से पास हुआ है, सविता जी को माइग्रेन की शिकायत रहती है, वर्मा जी बहुत दुःखी रहते हैं बिना किसी कारण के. इतना ही नहीं, किसे क्या खाना पसंद है, किसमें क्या क्या ख़ूबियाँ हैं, किसका ड्रेसिंग सेंस बहुत शानदार है और कौन बिलकुल फूहड़ है. गोया एक पूरा परिवार बन जाता है हमारे आस पास.

कुछ ऐसा ही परिवार बना रखा है ब्लॉगर्स बिरादरी ने भी. हमें भी ख़बर रहती है कि कौन, क्या और कैसा लिख रहा है या रही हैं. सतीश सक्सेना जी तो इसके माहिर हैं. हमें आए पूनम पूनम एक मास ही हुए थे कि उन्होंने छाप दिया अपने ब्लॉग पर कि दो लोग मिलकर बहुत अच्छा लिखते हैं और न जाने क्या क्या,जिसके लायक न हम तब थे, न अब. पाबला जी, खुशदीप सहगल, प्रवीण पाण्डे, चला बिहारी के बारे में सक्सेना जी ने लिखा, कुछ अनजान लेकिन उत्कृष्ट ब्लॉगर्स की भी इन्होंने चर्चा की. पंडित अरविंद मिश्र जी ने सतीश पंचम जी से मिलवाया और उन्होंने ही समस्त ब्लॉग जगत को पाबला जी के साथ हुई दुर्घटना का समाचार दिया. कई ऐसे भी मंच हैं, जहाँ चुनिंदा ब्लॉगर्स की चुनी हुई पोस्ट पर चर्चा और समीक्षा भी की जाती है. श्री मनोज कुमार, श्रीमती संगीता स्वरूप, सुश्री अनामिका, श्री अनूप शुक्ल, मयंक जी आदि इस ब्लॉग यज्ञ के यजमान के रूप में प्रतिष्ठित हैं.

ऐसा माहौल देखकर कोई भी यह सोचने पर विवश हो जाएगा कि हमारा ब्लॉग परिवार कितना आदर्श परिवार है. सच भी है, यहाँ झगड़े, तकरार, बहस, इल्ज़ाम, प्रशंसा, समीक्षा सब है. कुल मिलाकर बरतनों की खटपट के साथ ही यहाँ, परिवार के सारे सुर हैं, नहीं है तो बस एक बात, जो पिछले कई दिनों से मुझे खल रही है. अचानक अगर इस परिवार से कोई सदस्य ग़ायब हो जाए, तो उसकी कहीं कोई चर्चा नहीं होती.हो सकता है कि किसी के ग़ायब होने होने की ख़बर किसी एक को हो , लेकिन किसी ने लम्बे समय तक ग़ैर हाज़िर रहने वाले किसी ब्लॉगर की सुध ली हो, मैंने तो नहीं देखा. हो सकता है कि कई लोगों के पास गुमशुदगी की रिपोर्ट, मय वज़ह के दर्ज होती हो, लेकिन सामान्य तौर पर कोई नहीं सोचता.

चैतन्य जी ने तो मेरा नाम ही शिकारी कुत्ता रख छोड़ा है (प्यार है उनका,जो मेरा है वो आधा उनका भी तो है इस दुनिया में),कहते हैं मेरी घ्राण शक्ति इतनी तीव्र है कि कहाँ से कौन है और कौन किसके साथ जुड़ा है,पल भर में बता देता हूँ.बताने की ज़रूरत नहीं कि रात-रात भर बना कर फक़ीरों का हम भेस ग़ालिब, तमाशा ए कूचा ए ब्लॉग देखते हैं. पता रहता है कौन कौन क्या कर रहा है. हर बड़ा छोटा, जो दे (कमेंट) उसका भी हाल, जो ना दे उसका भी हाल.

ऐसे में अचानक कोई गुम हो जाए तो मुझे बेचैनी हो जाती है. चैतन्य जी से कई बार कहा है, नीलेश माथुर नहीं दिख रहे आजकल, कुँवरजी लापता हैं, संजय भास्कर (जो एक बार में दो टिप्पणी डालते हैं) ग़ायब हैं, बबली की शायरी सूनी पड़ी है, मो सम कौन कई दिन बाद लौटे और जब बताया कि आ गए हैं, तब लोगों ने जाना कि छुट्टी पर थे, सुलभ सतरंगी दिखाई ही नहीं देते, कोई सोचता भी नहीं कि वो सामाजिक व्यक्ति हैं, किसी आवश्यक सामाजिक अनुष्ठान मे व्यस्त थे, अपने झा जी (ऑनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी) कई महीने दूर रहे टिप्पणियों से, मुकेश कुमार सिन्हा तो चुपचाप ही निकल लिए अनजान यात्रा पर, सतीश सक्सेना जी ने युरोप यात्रा के पूर्व ही ब्लॉग मौन डिक्लेयर कर दिया ताकि लोग चिंता न करें, सरिता जी (अपनत्व) ने कुछ करीबी लोगों को बताया कि वो ऑस्ट्रेलिया जा रही हैं या अभी लंदन जाने वाली हैं तो पता भी चल गया,वर्ना किसको फिक्र होती कि वो नहीं हैं. कविवर योगेंद्र मौद्गिल "ज़िंदगी की ज़ंग" लिखकर गायब हो गए, मैंने सुधार भी किया पर न तो सुधार हुआ, न वो फिर आए. अपने स्वप्निल कुमार आतिश कभी कभार टिप्पणी देते दिख जाते हैं ,अब तो हिंद युग्म पर भी नहीं दिखते और न फेस बुक पर ही उनकी आमद दर्ज़ होती दिख रही है.दिलीप को तो शायद आप लोग अभी भी नहीं भूले होंगे, जिसकी ओजपूर्ण कविताएँ कभी 'दिनकर', कभी 'प्रसाद' की याद दिलाती थीं. लखनऊ क्या गए, बस लौट कर ही नहीं आए. आख़िरी बार पूछा था लोगों से कि किताब छपवाने का क्या रास्ता है. उसके बाद मौन.

कितना अजीब लगता है कि हमें टिप्पणियों की गिनती तो याद रहती है, टिप्पणियाँ देने वालों की गिनती हम भूल जाते हैं, टिप्पणियों की परवाह तो हम करते हैं, टिप्पणियाँ लिखने वालों की परवाह नहीं होती. ऐसा होता तो किसी ने कभी उनकी अनुपस्थिति के बारे में चिंता ज़ाहिर करने के लिए ही कोई पोस्ट लिखी होती. और अगर लिखी जाती तो कारण जानने वाले लोग अवश्य बताते कि वो ख़ैरियत से हैं,परिवार को समय दे रहे हैं.लेकिन ऐसा किसी ने लिखा हो तो हमने नहीं देखा. हमने तो इस मारे यहाँ लिख मारा कि इसे आप चाहें तो गुमशुदगी की रिपोर्ट समझें, या ब्लॉग थाने की एफ. आई. आर.

अब लगता है कि हम दो लोगों ने लिखना शुरू करके अच्छा किया कि अगर कल को कहीं ज़िंदगी की हार्ड डिस्क से मेरी फाइल डिलीट हो गई, तो कम से कम चैतन्य बाबू उस दुनिया को बता तो सकेंगे मेरे बारे में, जिसके लिए  मैं हमेशा कहा करता था कि

देखना  रोएगी, फरियाद  करेगी  दुनिया,
हम न होंगे तो हमें याद करेगी दुनिया
अपने जीने की अदा भी है निराली सबसे,
अपने मरने का भी अंदाज़ निराला होगा.

पुनश्चः देखिए मैं भी भूल गया देवेश प्रताप और "लड्डू बोलता है - इंजिनियर के दिल से" वाले लाल बुझक्कड़ साहब को.

30 comments:

निर्झर'नीर said...

khushkismatii hai ki aapko pahli baar padha or pahli baar hi aapse prabhavit hue bina nahi rah sake...

yakinan aapki baar durust hai ki hum sirf tippaniyon ki khabar rakhte hai parivar ka kon sadasy kahan gayab hai uski koi khabar nahi rakhte .
ye sach mein ek sochniyy baat hai
aapko padhna or aapke vicharon se ru-b-ru hona bahut accha laga .
khoobsurat post ke liye aap bandhai ke haqdaar hai ..swikar karen

shikha varshney said...

बात तो सही कही आपने ...

honesty project democracy said...

अच्छी लगी यह गुमशुदगी रिपोर्ट,मैंने हाजरी लगा दी है अब गुमशुदा से नाम हटा दीजियेगा ,हा..हा..हा..| वैसे सलिल जी ब्लॉग परिवार में इतना तो अपनत्व है ही की हम एक दूसरे के दुःख सुख की भी परवाह करने लगे हैं | मैं तो रिलाइंस के डाटा कार्ड तथा मोबाईल कंपनियों के ठगी भरे सेवा जो वह गांवों के लोगों को देती है के कारन तथा गांवों के लोगों के दुखों की हकीकत जानने में समय देने की वजह से लगभग एक महीने सक्रीय नहीं रहा नहीं तो मैं कम से कम दो से तीन घंटे समय नेट पर जरूर बिताता हूँ | अच्छी प्रस्तुती है आपकी गुमशुदा ब्लोगर्स के तलाश की ...

kshama said...

Bahut sahi kaha hai....aapas me phone pe baaten hoti hain to zikr ho jata hai,ki,falan,falan ne bahut dinon se kuchh likha nahi. Seedhe blog pe koyi ata pata kare to waqayi bada apnapan mahsoos ho.

मनोज कुमार said...

हमें टिप्पणियों की गिनती तो याद रहती है, टिप्पणियाँ देने वालों की गिनती हम भूल जाते हैं, टिप्पणियों की परवाह तो हम करते हैं, टिप्पणियाँ लिखने वालों की परवाह नहीं होती.
बात तो सही कही आपने !

मनोज भारती said...

ब्लॉग जगत की अच्छी खोज़ खबर रखते हैं आप । रिपोर्ट खबर दे रही है कि हमारे बहुत सारे सदस्य आजकल बलॉग पर नहीं आ रहें हैं और हमें अपनी रचनाओं और टिप्पणियों से वंचित किए हुए हैं । हमें भी इन सभी साथियों के लौटने का इंतज़ार रहेगा ।

Arvind Mishra said...

कभी कभी मेरे दिल में भी ऐसयीच खयाल आया -आपने बहुत वाजिब बात उठायी ..आज मैं भी सोच रहा था ज्ञान जी भी लिखना बंद ही कर दिए हैं ..उन्हें अभी मेल भेजने की सोच रहा हूँ .

Satish Saxena said...

कमाल कि सोच और मौलिकता है . काश ब्लाग जगत में हम सब आपके जैसा सोचने लगें ! वाकई अपन घर लगेगा...
आपने इस लेख को एक सुंदर चर्चा का रूप दे दिया ! शुभकामनायें !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अच्छी पोस्ट.
..प्रेम बढ़ाने में सहायक.

शिवम् मिश्रा said...

जितने भी नाम आपने यहाँ लिए है काश कि आपने उनके नाम को उनके प्रोफाइल के लिंक के रूप में दे दिया होता या उनके ब्लॉग के लिंक के रूप में ..................पूरे लेख का मज़ा ही दुगना हो जाता ! वैसे, बेहद बढ़िया तरह से आपने अपनी बात कही है |

दिलीप आजकल अपनी नौकरी में काफी वयस्त है साथ साथ कुछ पढाई भी चल रही है सो आजकल ब्लॉग से दूर है !

शिवम् मिश्रा said...

आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सही खोज -बीन की है.....दिलीप की कविताओं को मैं भी बहुत याद करती हूँ ...ना जाने कहाँ गायब हैं महाशय .. योगेन्द्र मौदगिल जी ने क्यों विदा ले ली नहीं मालूम...बस उनकी पोस्ट ही पढ़ी थी ...
बहुत अच्छी पोस्ट बनायीं है...आभार

राम त्यागी said...

चलो बढ़िया, आपने काफी लोगों से मिला दिया :)

स्वप्न मञ्जूषा said...

aapki baat sahi hai...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

भैया , यहाँ हर कोई खुद में व्यस्त है ... किसीको फुर्सत कहाँ कि किसी और का सोचे ...
आप धन्य हैं जो इतना सोचते हैं ...

किसी किसी की कमी खलती ज़रूर है, पर हमेशा हर कोई व्यक्त नहीं करता है ...

आपके इस आत्मीयतापूर्ण लेख के लिए बधाई !

वाणी गीत said...

मैं नहीं भूलती टिप्पणीकारों को ...
मेरी पिछली पोस्ट देख लीजिये ...:):)

डा० अमर कुमार said...


सही है !
चन्द्रमौलेश्वर पेरसाद बहुत ही सक्रिय टिप्पणीकार थे ।
गायब हुये, मेरे पूछे जाने पर चिट्ठाचर्चा पर पता लगा की बड़ी आँत के ऑपरेशन के बाद स्वाथ्य-लाभ कर रहे हैं ।
आज कई महीने हो गये हैं, कहीं कोई खोज खबर नहीं । ऎसे में अपनी सक्रियता लेकर मोहभँग होना स्वाभाविक है ।
अब मुझे भी अच्छी पोस्ट पर चलताऊ टिप्पणी देकर सरकने वाले अपने को जॅस्टीफ़ाई करते दिखते हैं ।


क्या टिप्पणीकार का रोल पोस्ट-लेखक के अहँ को सहलाना मात्र ही है ?

डा० अमर कुमार said...


क्षमा कीजियेगा, मैं पुनः दोहराऊँगा कि...
क्या टिप्पणीकार का रोल पोस्ट-लेखक के अहँ को सहलाना मात्र ही है ?

soni garg goyal said...

अच्छी रिपोर्ट दर्ज की है !!!!!!
दिलीप जी की कविताये तो वास्तव में अचानक से गायब हो गई किसी ब्लॉग पर आज उनका कमेन्ट देखा था उम्मीद है कविता भी जल्दी दिखेगी वैसे इनके अलावा श्रीकुमार गुप्ता (Life is a strange beauty) जी की कविताये भी याद आती है 14 जुलाई को एक महीने बाद आए थे अपनी "इंतज़ार" कविता के साथ और अब फिर से गायब है ! वैसे आपको नामो के साथ लिंक भी देने चाहिए थे हमें भी उन्हें तलाशने में आसानी होती ! अगर अब संभव हो सके तो दीजियेगा !

सम्वेदना के स्वर said...

@ डॉ. अमर कुमारः
आपने एक उचित प्रश्न उठाया है. टिप्पणियाँ एक ब्लॉगर की पहचान होती हैं, जो इस आभासी जगत के गली, नुक्कड़, सड़क या चौराहे पर बिखरी मिल जातीं है.... कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जिनको निभाना होता है… हमें अच्छा नहीं लगता कि न्यौता मिलने पर किसी के घर सिर्फ इसलिए नहीं जाएँ कि उस दिन हमारा उपवास है. भोजन करना, न करना अलग बात है, लेकिन न्यौता अस्वीकार कर देना, परम्परा के विरुद्ध और अभद्रता हो जाती है. उपस्थिति दर्ज़ करनी ही पड़ती है. हमें भी अच्छा नहीं लगता कि पोस्ट का कंटेंट देखकर, उसपर की जाने वाली अपनी टिप्पणी के आफ्टर एफ्फेक्ट्स के बारे में सोचें कि इसका दूसरों के साथ सम्बंधों अथवा व्यावसायिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा और धीरे से निकल जाएँ.

आपके आगमन तथा एक और गुमशुदा ब्लॉगर की चर्चा करने के लिए आभार!

प्रवीण पाण्डेय said...

ब्लॉगरों का अपना एक अलग विश्व है और उसकी खोज खबर वे लेते रहते हैं, नियत समय पर। बड़ी सुन्दर भावों की नगरी है यह, समवेत सम्वेदना के स्वर भी हैं यहाँ।

Apanatva said...

are aapkee nazar ke kayal hogaye hum to..........
aapkee meethee see shikayat kuch nazdeekee logo ko khabar pyaree lagee.....JEEVAN CHAKR...YE SHIKAYAT DOOR KAR DEGA.........
SHOBHANA choure jee kafee samay nahee thee mujhe fikar ho gayee thee maine ise douraan jyoti jee ko kaafee pareshaan kiya...vo bhee barabar contact karne kee koshish karatee rahee......
Poonam jee bhee kafee vyast rahee apnee mother in law kee aswasthta ko le......
kamee akhartee haipar ha blog par nahee darshaya.....
laga sab apane me hee mast hai......par aapkee post ne aankhe khol dee.....Aabhar
I am impressed .............:)

स्वप्निल तिवारी said...

heheh...are main fir tippani karne aa gaya...aap ki post par kuch na kahun to ye soch kar hi darr lagta hai ..in dino din chhote gaye hain bas zara se... :( zara lambe hote to kam bhi kar leta aur yahaan bhi aa jata... :)

han sahi kaha apne hum tippaniyon par to dhyan dete hainpar bhool jate hain ki koi aaya nahi ... dilip ji ..maudgil ji ..in logon ko maine padha hai ..aur chachta hgun kihumesha likhte rahen ye log .. :)

nilesh mathur said...

भैया हम आ गए हैं, हाज़री लगा दीजियेगा, आपकी ये पोस्ट पढ़कर बहुत भावुक हो गया हूँ, एक नए परिवार का सुखद अहसास हो रहा है, आज ब्लॉगजगत या कहें की ब्लोगपरिवार में आना सार्थक हुआ! बहुत धन्यवाद!

संजय @ मो सम कौन... said...

लो सरकार,
हमारी भी हाजिरी लगा लो। हमें तो पता ही नहीं था कि हम भी नोटिस किये जाने लायक हैं।
धन्यवाद आपका।

शिवम् मिश्रा said...

एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं!

Rohit Singh said...

वाह आपाक ये अंदाज काफी अच्छा लगा। समाजिक जिंदगी से जो दूर होता जा रहा था। उसका किसी को ख्याल तो आया। ब्लॉग से ही सही। पता तो चले कौन कहां क्या कर रहा है। अगर कोई पॉजिटिव काम हो रहा हो तो हम नहीं तो कोई औऱ ही सही कुछ मदद कर पाए तो शायद उसे खुशी होगी। ब्लॉग पर ज्यादातर लोग कुछ करना चाहते हैं। बस कुछ समय की बात और है ब्लॉग बिरादरी सक्रिय तौर पर समाज में जाना जाने लगेगा। आसानी से।

वैसे कई पोस्ट पर जाता हूं औऱ नई पोस्ट मिलने पर उन लोगो की पोस्ट पर पूछता ही रहता हूं कि लोग कहा है। कहां गोता लगा गए हो भई। पर कोई जवाब नहीं आता। कोई कोई ईमेल कर देता है।

दो ब्लागर हैं जो विदेशी थे पर उनकी हिंदी अच्छी थी। वो कहां गई पता नहीं चल पा रहा है। मेल भी की थी पर जवाब नहीं आया।

पंकज मिश्रा said...

भई सलिल जी, पोस्ट शानदार है इसमें कोई शक नहीं। लेकिन मुझे भी शामिल कर लिया होता तो कितना अच्छा रहता। खैर कोई बात नहीं, आगे से याद रखेंगे तो अच्छा लगेगा। धन्यवाद

अनूप शुक्ल said...

बहुत सुन्दर पोस्ट! बस इसी तरह लिखते रहें और कभी गुमसुदा न हों!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...
This comment has been removed by the author.
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