अभी पीछे सुरेश चिपलूनकर जी की एक पोस्ट पढकर पिछले लोक सभा चुनाव परिणामों पर हमारी चर्चा दुबारा से सिर उठाने लगी. मैं और सलिल भाई तो चर्चा कर ही रहे थे कि मनोज भारती जी भी इसमें शामिल हो गए. इन ईवीएम को लेकर कई शंकाएँ हम सबके मन में थीं. अब जो बातों ने सिलसिला पकड़ा तो फिर दूर तक चला ये दौर. आइए आप भी शामिल होइए इस बहस में:
मनोजः 2009 लोकसभा के चुनाव परिणामों और पहले की भविष्यवाणियों में कोई तालमेल नहीं था. अब ऐसे में हारने वाली पार्टी तो कहेगी ही कि ये सब ग़लत हुआ है, जैसा हर बार होता है.
चैतन्यः याद है, पिछले लोकसभा चुनाव के आश्चर्यजनक परिणामों ने सभी चुनावी सर्वेक्षणों और भविष्यवाणियों को धाराशायी कर दिया. सर्वेक्षण और भविष्यवाणियाँ गलत हो सकती हैं. परन्तु इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को लेकर, सन्देह बरकरार है. सुरेश चिपलूनकर जी की ताजा पोस्ट और चुनावी पंडित जी.वी.एल. नरसिम्ह राव की किताब “डेमोक्रेसी एट रिस्क” बहुत गम्भीर सवाल खड़े करती है.
सलिलः लेकिन दुनिया में और भी देश हैं जो इस मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं. वहाँ क्यों नहीं उठी ऐसी बात?
चैतन्यः मुझे नहीं पता कि दुनिया में और किस देश में यह मशीन इस्तेमाल की जाती है. हाँ, विश्व के दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण लोकतंत्र अमरिका तथा इंगलैंड आज भी पेपर वोटिंग में ही विश्वास रहते हैं तथा विकसित देश होने के बावज़ूद ईवीएम के इस्तेमाल से बचते रहे हैं. हालैंड तथा कनाडा जैसे देशों ने ईवीएम का प्रारम्भ मे प्रयोग किया परंतु बाद में विवादों के चलते इनका प्रयोग त्याग दिया गया.
मनोजः भारत में बूथ कैप्चरिंग, बोगस वोटिंग बात आम है, ऐसा हमेशा होता रहा है.
चैतन्यः आप ठीक कह रहे हैं. हमारे चुनावों की यह परम्परा रही है. दरअसल भारतीय राजनीति सत्तारुढ दल को बहुत अधिक ताकत दे देती है. ऐसे में किसी पार्टी विशेष द्वारा ईवीएम के गलत इस्तेमाल से इंकार नहीं किया जा सकता. इस व्यवस्था का फूल-प्रूफ और पारदर्शी होना नितांत आवश्यक है.
सलिलः वो कैसे?
चैतन्यः एक थ्योरी के अनुसार रिमोट कंट्रोल से ईवीएम डाटा चुराया जा सकता है तथा फिर उस डाटा को अपने अनुसार संशोधित करके, पुन: मशीन में लोड किया जा सकता है. मोबाइल फोन में ब्लूटूथ टैक्नोलोजी का प्रयोग करने वाले इस तरह की सम्भावानाओं से भलीभांति परिचित होंगे.
मनोजः क्या बात करते हैं आप, चैतन्य जी! कहाँ मोबाईल फोन और कहाँ ईवीएम!
चैतन्यः इसे आप वैज्ञानिक धांधली कह सकते हैं. इस अवधारणा के अनुसार मशीन के माइक्रोचिप में एम्बेडेड ट्रान्समीटर और रिसीवर लगाकर प्रत्येक माइक्रोचिप को रिमोट एक्सेस से सक्रिय किया जा सकता है. एक माइक्रोचिप में लाखों छोटे सर्किट होते हैं और इन सर्किट्स के बीच एम्बेडिड सर्किट को इस तरह फिट कर देना या उसका दोहरा उपयोगी होना बहुत ही आसान है, जिसका कभी भी पता ही नहीं चल सकता.
सलिलः एक मिनट... आपकी बात समझ में आ रही है. लेकिन किसी बाहरी सर्किट को मशीन में लगाना और पता न चलना …ज़रा और खुलकर बताइए.
चैतन्यः सुनने में मुश्किल लग सकता है, पर है बिलकुल आसान. यह एम्बेडिड सर्किट एक निश्चित फ्रीक्वेंसी पर तथा एक निश्चित निर्देश के बाद ही सक्रिय और निष्क्रिय होते हैं. यदि इसका ज्ञान नहीं है तो इनको कभी भी पहचाना नहीं जा सकता.
सलिलः एक उदाहरण देकर समझा सकते हैं यह हेरफेर की प्रक्रिया!
चैतन्यः एक ईवीएम 4500 वोटों को रिकार्ड करने में सक्षम बतायी जाती है और आमतौर पर एक पोलिंग बूथ पर लगभग 1500 वोट होते हैं. अब माना कि एक पोलिंग बूथ पर 50 प्रतिशत वोट पड़े तो कुल 750 वोट हुए.
मनोजः यह तो सीधा गणित है... इसमें हेराफेरी कहाँ हुई...
चैतन्यः सुनिए तो सही… इलेक्ट्रॉनिक हैकिंग के माध्यम से यदि मात्र 50 वोट प्रति ईवीएम किसी एक पार्टी के पक्ष में डाल दिये जायें तो शाहरुख खान की कसम, इस धांधली का पता लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जायेगा.
सलिलः हा,हा! इस तरह कितने वोटों का फेरबदल किया जा सकता है?
चैतन्यः इस तरह एक चुनाव क्षेत्र में लगभग 45000 वोटों की हेराफेरी की जा सकती है. मज़ेदार बात यह है कि प्रति ईवीएम 50 वोटों का हेरफेर भी किसी एक पार्टी से न करके विभिन्न पार्टीयों से कुल 50 वोट लेकर किसी एक पार्टी विशेष के खाते में डाल कर भी किया जा सकता है.
सलिलः अब सवाल यह उठता है कि यह धांधली इतने बड़े स्तर पर कैसे की जा सकती जबकि चुनाव प्रक्रिया में इतने सारे लोग संलग्न होते हैं?
चैतन्यः धांधली इतनी मुश्किल भी नहीं जितनी प्रतीत होती है. इसे प्रामाणिकता देने के लिये पोलिंग बूथ पर वोट डालने से लेकर ईवीएम के उपयुक्त सुरक्षा में चाकचौबन्द करने तक पूरे कर्मकांड किये जा सकते है. क्योंकि असली खेल तो सबसे आखिर में खेला जा सकता है.
मनोजः वो कैसे!!
चैतन्यः इसके लिए नई दिल्ली या न्यूयार्क के किसी वातानुकूलित कमरे में बैठी हैकिंग टीम, उपग्रह द्वारा एक निश्चित फ्रीक्वेंसी तथा कमांड के साथ, एक सिगनल प्रेषित करती है जो माइक्रोचिप को रिसीविंग मोड में ले आता है. आपके मोबाइल के सिम कार्ड की तरह प्रत्येक माइक्रोचिप का एक विशिष्ट आईडी होता है, जिससे उसकी पहचान होती है. बाद में माइक्रोचिप से सारा डाटा हैकिंग टीम अपने कम्पूटर पर लोड कर लेती है. इस डाटा को पार्टी विशेष के पक्ष में संशोधित कर, फिर से ईवीएम में लोड किया जा सकता है. बस हो गया चुनाव!! चैनलों पर अपने अपने पंडित बैठा कर जैसी चाहें समीक्षा करवा लीजिये.
मनोजः मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा!
चैतन्यः कहते हैं कि, यह वैज्ञानिक धांधली इतनी सटीक हो सकती है कि एक-एक वोट का हिसाब अपनी सुविधा अनुसार किया जा सकता है. चुनावों को विवाद से बचाने के लिये विरोधी पक्ष के हितों का भी ध्यान रखा जा सकता है. अपनी पुरानी पोस्ट में सुरेश चिपलूनकर जी ने तो एक पूरा पैटर्न बताया है हारने वालों का.
सलिल : लेकिन लोकसभा के बाद के चुनाव तो फिर पुराने पैटर्न पर ही थे. अभी तेलांगना में टी.आर.एस की जीत भी तो हुयी.
चैतन्यः निहित स्वार्थ की थ्योरी तो यही कहती है कि अगर हो सकता है तो यह सब खेल विश्वस्नीयता के आवरण में ही हो सकता है. यानि बहुत सारे चुनावों के बीच बस एक गड़बड़-झाले वाला चुनाव, बस वही चुनाव जिससे सब कंट्रोल में रहता है.
सलिलः मुझे तो यही सोचकर आश्चर्य होता है कि वह देश जिसमें 77 प्रतिशत जनता बीस रुपये रोज़ पर जिन्दा है वहाँ बेहद गरीब और अशिक्षित मतदाताओं से इलेक्ट्रॉनिक वोट डलवाना ही सबसे बड़े सवाल खड़े करता है.
मनोजः मुझे तो लगने लगा है कि भारतीय बाजारों को विदेशी नियंत्रण में रखने के लिये, देश की राजनीति में खासे निहित स्वार्थ हैं, ऐसे में किसी विशेष पार्टी के सत्तारुढ होने में ईवीएम के गलत इस्तेमाल से इंकार नहीं किया जा सकता.
सलिलः लेकिन कोई तो तरीका होगा जिससे इस पूरे एपिसोड को पारदर्शी बनाया जा सके?
चैतन्यः मैं तो अपनी बुद्धि के अनुसार सुझाव दे सकता हूँ. प्रत्येक ईवीएम मशीन का, कुछ नहीं तो पेन ड्राइव या पोर्टेबल डिस्क ड्राइव में कोई पैसिव बैकअप भी होना चाहिये, जिसे अलग से रखा जाये और विवाद की स्थिति में उसके डाटा और मूल ईवीएम के डाटा का मिलान किया जाये. वोटर नम्बर के साथ प्रत्येक मत को रजिस्टर किया जाये, और चुनाव के बाद यह सभी डाटा इनटरनैट पर उप्लब्ध रहे ताकि अपना पासवर्ड डालकर कोई भी ताकीद कर सके कि उसका वोट कहाँ गया?
मनोजः ये आधी अधूरी व्यव्स्था ही शक डालती है!!
हमारी वार्त्ता तो यहाँ ख़त्म हो गई, लेकिन इस मुद्दे पर हर स्तर पर वार्त्ता की आवश्यकता है. कब तक यह ज़िम्मेदारी सिर्फ सुरेश चिपलूनकर सरीखे लोग ही उठाते रहेंगे. और तब जबकि ख़ुद निर्वाचन आयोग ही इन बातों को नकारने की बात से बचता रहा है.
14 comments:
ghotalo kee koi umr nahee hotee.......vardaan jo mila huaa hai inhe .......inaka bhee kshetr failata hee ja raha hai weed kee tarah......pardafash karne wale ikke dukke hai par in par aavran dalne wale anek .........
ye rajneeti hai .......
Itihaas gavah hai Ramayan ho ya Mahabharat ya fir Kans mama hee ....ise aadhipaty ke lalach ne kya nahee karwaya...........
ye meree soch hai krupaya anytha na le........
Uff! Hairaan hun! Aisabhi ho sakta hai,kabhi sochaa hee na tha! Gar janta is muddeko uthake avm ko hatana chahe to kaise kar sakti hai? Kaunsi sarkaar sunegee??Kaunsee pranali is baat ko maan jaygi??
बाप रे ! ऐसा भी हो सकता है ? वाह, क्या हेकिंग सिखाई है विचारोतक और जानकारीपूर्ण ! लेकिन आपने जो इसका तोड़ दिया है उसे पढने के बाद तो यही कहा जा सकता है कि वापस पेपर वोटिंग ही शुरू कर दी जानी चाहिए ! क्योकि इस धांधली की रोकथाम शायद, जी हाँ शायद ऐसे ही संभव हो !
एक सही लेखक का काम ऐसी शक्तियों के जाल में जकड़े समाज में छटपटाने की भावना और उस जाल को तोड़ने की शक्ति जागृत करना है। यह पोस्ट उसमें सफल है।
बहुत सही पोस्ट लगायी है....भारत में हर चीज़ का तोड़ बहुत जल्दी बन जाता है....सब कुछ हो सकता है ...
बहुत बढ़िया वार्ता रही .......धांधली इस हद तक होती है ...सुन कर आश्चर्य होता है .
इस मशीन पर पश्चिमी देशों में ऊंगलियां उठने लगी हैं और जिस कारण से उठ रही हैं, वे जरूर यही होंगे जो आपने बताए हैं ..बहुत ही सार्थक चर्चा
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
:)
यहाँ तो बहुत अच्छी चर्चा है......'पाखी की दुनिया' में भी घूमने आइयेगा.
is evm me ghotala hota hai .. ye to pata tha...par itni aasani se bina pakde jane ke darr ...dimaag saany saany kar raha hai mera..... hum kuch bhi kar len ...chunaav nispaksh aur sahi tareeke se nahi ho sakte.. :(
bandar ke haathon mein ustra aa jaaye to kya hoga ... hamara samaj abhi is layak bana nahi hai ki gantantra safal ho sake ...
रोचक चर्चा रही । वाकई में मात्र .2 या .5 प्रतिशत वोट भी अगर इधर उधर कर दिये जाये तो पूरे चुनाव की वाट लग जाये । शक और भी गहरा हो जाता है जब ऐन 2009 लोकसभा चुनाव के वक्त दागदार छवि वाले नीवन चाचनल को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया था । नवीन चावला ने इंमरेजेंसी के दौरान संजय गांधी के कहने पर तमाम गंदे काम किये थे । शाह आयोग ने नवीन चावला के लिये बहुत कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया था ।
भले ही समय बचाने की खातिर EVM का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन उसमें ऐसी व्यवस्था होना बेहद आवश्यक है कि दिये गये वोट का प्रिण्ट आउट अथवा कोई कागजी रिकॉर्ड अवश्य मौजूद हो, ताकि सभी शक-शुबहे दूर हो जायें…
इसी प्रकार जहाँ वोटिंग के बाद EVM मशीनें रखी जायें उस क्षेत्र को "मोबाइल जैमिंग" किया जा सकता है, जिससे इलेक्ट्रानिकली कोई छेड़छाड़ सम्भव नहीं हो…
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