बच्चों से बातें करना
वेद पुराण उपनिषद का पढ़ना.
दिल की कहना दिल की सुनना
उन्मुक्त निडर नदिया सा बहना.
दुनिया को पैरों में रखना
पैरों को सर पर रख लेना,
सर को फिर ज़मीन पर रख कर
एक कलाबाज़ी खा जाना.
गोल गोल दुनिया के चक्कर
उनसे सदा सहज ही बचकर
अपनी दुनिया अलग बसाना
बच्चों ने बचपन से जाना.
ज़रा ग़ौर से देखें हम जो
बच्चों की नन्हीं दुनिया को
सहज भाव से भरी हुई है.
प्रेम सहज है, क्रोध सहज है
जीवन का हर छन्द सहज है
प्रीत का एक धागा ऐसा है
रोते रोते वो हँस पड़ता.
बच्चों के भावों में खोजें
एक अलौकिक ज्ञान मिलेगा
कर्ता-कर्म का द्वंद्व न होगा
पल पल का विस्तार मिलेगा.
हम सब भी तो बच्चे ही थे
इसी भाव में रचे बसे थे
फिर हमको क्या हो जाता है
वो बच्चा क्यों खो जाता है.
तत्व प्रश्न जीवन का यह है
इसका उत्तर कठिन है मिलना
बच्चों से बातें करना
वेद पुराण उपनिषद का पढ़ना.
37 comments:
Ek khaas umr ke bachhon ke saath samay bitana mano lagta hai,eeshwar ke saath bita rahe hain..badon kee duniya me bachha aage chalkar kho jata hai...bada jo ho jata hai..
बहुत ही प्यारी रचना
हम सब भी तो बच्चे ही थे
इसी भाव में रचे-बसे थे
फिर हमको क्या हो जाता है
वो बच्चा क्यों खो जाता है
सच है अपना बचपन हम भूल जाते हैं
परेशानी तो यही है कि फिर से बच्चा नई बना जा सकता .
बहुत प्यारी रचना.
जी बहुत पते की और प्यारी बात की आपने ...बच्चों से बातें किसी उपनिषद से कम आनन्द नही देती -और आश्चर्य उन्हें सब मालूम रहता है -बस उन जैस्सा बन के देखिये सुनिएतब !
waah ..soch samajah walon ko thodi nadani de maula....:)
aaj to aap nadaan hue ghum rahe hain ...kitni meethi hai ye rachna ...dil bachha ho gaya ise padhte padhte ...:)
bahut bahut bahut pyari post lagi ...:)
अगर वर्ड्सवर्थ की मानें तो स्वर्ग बचपन के आस-पास रहता है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
अभिलाषा की तीव्रता एक समीक्षा आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
आप की रचना 17 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
बच्चों से बतियाना मुझको भाता है,
ज्ञान भरा है, कितना उनको आता है।
:)
बहुत सुन्दर बात, फिर कुछ पलों के लिए बचपन लौटा दिया आपने. यकीं ही नहीं होता की कभी बचपन भी था इस आपा धापी में सब कुछ जैसे छूट ही गया
मासूमियत की फिर से वापसी की उम्मीद करना अच्छा लगा ! इस बहाने कुछ लम्हे बेहतर गुज़रे !
बच्चे मन के सच्चे...... सबकी आंख के तारे।
मन भा गई कविता।
सच है ..बच्चों से बात करना मन को शांति देता है ...सुन्दर अभिव्यक्ति
बेहद उम्दा रचना .....एकदम सही कहा है आपने .....बच्चों से बातें करना वेद पुराण उपनिषद का पढ़ना|
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
बहुत प्यारी रचना.
Bade hokar hi pata chalata hai bachapan ka mol...varana to bachpan me bade hone ki chah rahati hai
bahut sundar rachana.
ye dusari bar comment ki try kar rahi hun pahale ho nahi paya...
बहुत सुन्दर...बच्चों से बतियाना मन को बड़ा सुकून देता है|
ब्रह्माण्ड
किसी शायर ने अच्छा कहा है - " बड़ो की देख कर दुनिया मेरे अन्दर का एक बच्चा बड़ा होने से डरता है ." बहुत ही सहज विवरण - एक अच्छी कविता !
वाह्…………बच्चों के माध्यम से हर इंसान की चाहत बयान कर दी…………………बहुत ही सुन्दर रचना।
बहुत ही सुन्दर रचना !
काश हम बच्चों की मुस्कान से कुछ सीख सकें ....
बहुत ही पसंद आई आपकी यह रचना
बच्चोँ को समर्पित बहुत ही सार्थक लेखन। बधाई! -: VISIT MY BLOG :- जिसको तुम अपना कहते हो...........कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ।
बहुत सुन्दर
सच कहा है....
हाय बचपन... किते खो गए तुम???
बहुत बढ़िया कोशिश है यह.
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इसी बचपन को लौटाने के बदले दौलत, शोहरत और जवानी तक देने को तैयार हो गये थे जगजीत सिंह, और फ़िर भी ये डील महंगी नहीं।
जी वैसे हम तो खुद ही बच्चे हैं जी। सो बच्चों के साथ मजा आता है जी। पर जब लोग बड़ा कर बना देते हैं तो ऐसी ही खूबसूरत कविता को पढ़कर फिर से बच्चा बन जाते हैं या बचपन की यादों में को जाते हैं....
प्रिय बंधुवर चैतन्य जी
नमस्कार !
बहुत समय बाद आपके यहां पहुंचने पर बहुत कुछ खोने की अनुभूति के मध्य " बच्चों से बातें करना " सुखद् अनुभव रहा ।
वो बच्चा क्यों खो जाता है ? इस मा'सूम प्रश्न का उत्तर खोजा जा सके तो समूची मानव जाति पर उपकार होगा ।
एक श्रेष्ठ रचना के लिए बधाई स्वीकार करें ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सचमुच कभी कभी अपने अंदर के बच्चे से भी बात कर लेना चाहिए।
वेद,पुराण,उपनिषद पढ़ने जैसा ही है बच्चों से बातें करना । बच्चों की सरलता को फिर से पा लेना ही तो हमें ये सब सिखाते हैं । एक अति सुंदर रचना ।
सच है अगर हम सब भी बच्चे बन सकें तो कितना अच्छा हो ....
वैसे हर बड़े में एक बच्चा छुपा है बस उसे निकालने की ज़रूरत है ....
कमाल कर दिया ।
बहुत मुश्किल सवाल उठाया है आपने. हो सकता है कि हम कभी अलसाए से भूल जाते हैं कि बच्चे को बचाए रखना कितना ज़रूरी है
kise fursat h.sab dam aur nam ke pichhe bag rahe hain sant bhi
🙏🥀👍💝
बच्चों से बातें करना वेद उपनिषद का पढ़ना ।
बहुत ही अच्छा लगा यह लेख पढ़कर
सही है। उत्साही बच्चों के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है
छोटे बच्चे हमेशा खुश उत्साहित और आनंदित रहते हैं बिना किसी कारण। जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं उत्साह मैं कमी आ जाती है । बच्चों के उत्साह को बढ़ाना अति आवश्यक है।
क्रिकेटर युवराज सिंह का किस्सा तो आपको याद ही होगा छह बालों पर छह सिक्स पहला सिक्स दूसरा लगाया ऑडियंस ने उत्साह बढ़ाया और पूरा स्टेडियम सिक्स सिक्स करता रहा और युवराज सिक्स लगाता रहा। छह बॉल में छह सिक्स लगा डाले युवराज सिंह ने
इस लेख को लिखने वाले का नाम तो नहीं जानता पर अच्छा लिखा तो मैंने भी लिख दिया धन्यवाद बहुत-बहुत शुक्रिया और बधाई
🙏🥀🌻💝💚💖
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