माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजनों में व्याप्त भ्रष्ट्राचार के मामलों में बुधवार को सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम के पास फ़ुट ओवरब्रिज के ताश के पत्तों की तरह ढह जाने पर सरकार की भर्त्सना की।
न्यायमूर्ति जी. एस. सिंघवी और ए.के. गांगुली की पीठ ने कहा
“इस देश में काम हुए बिना ही भुगतान कर दिया जाता है। नवनिर्मित पुल ताश के पत्तों की तरह ढह गया। 70 हजार करोड़ रुपये की बात है। देश में इतना भ्रष्ट्राचार है। हम आंख मूदं कर नहीं बैठ सकते।“
नेहरु स्टेडियम के पास ओवरब्रिज ढह जाने पर चिंता जताते हुए पीठ ने कहा
“15 अक्टूबर तक राष्ट्रमंडल खेल सार्वजनिक मामला है । इसके बाद सब कुछ निजी हो जायेगा। “
पीठ ने यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान की। उसमें आरोप लगाया गया है कि नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एन डी एम सी) ने संरक्षित स्मारक जंतर-मंतर के समीप एक ऊचीं इमारत बनायी है।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने आरोप लगाया है कि एन.डी.एम.सी. की इमारत कानून की अनदेखी करके बनाई गयी है। कानून के अनुसार संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के दायरे में इस प्रकार के निर्माण पर रोक है।
सुनवाई के दौरान इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया गया कि जंतर मंतर के समीप अन्य भवनों की इजाज़त दी गई। पीठ ने तल्ख अन्दाज में टिप्पणी कीः
"कितने बुद्धिहीन और अराजक हैं आप। न तो इतिहास के प्रति कोई सम्मान है और न संविधान के लिये। यह सरकार पूरी तरह अनैतिक है। इसके पास किसी प्रकार के मूल्य ही नहीं हैं । सिर्फ पैसे से लेना देना है। आप जंतर मंतर के स्थान पर होटल या मॉल क्यों नहीं बना देते। भारत निर्माण हो जायेगा।"
पीठ भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा 2006 में दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
(प्रेस ट्रस्ट की खबर)
16 comments:
सत्ता के गलियारों में दलालो का कब्ज़ा रहता है - तो येही टिप्पणियां आती है.
पर बात पर हमें न्यायालय और सेना कि मदद लेनी पड़ती है. क्यों?
क्यों न देश कि बागडोर भी इन्ही के हाथ में सोंप दें.
shayad ab sudhar jaye ye swaarthi sarkaar.
इन नेताओं के लिए कुछ भी माफ़ है ... ये तो सबसे ऊपर हैं .... अभी ४ दिन पहले मैं जंतर मंतर के पास से ही गुज़रा और आश्चर्य हो रहा था वहाँ की स्थिति देख कर .... पर नेताओं का क्या ... देश तो उनकी जागीर है ...
“15 अक्टूबर तक राष्ट्रमंडल खेल सार्वजनिक मामला है । इसके बाद सब कुछ निजी हो जायेगा।
jab desh ki asmitaa ki baat aati hai to neta chahte hai janta sahyog de,par jab apnaa ghar bhar rahe they ,tab koi sharm nahi aai ,aaj janta itne bade aayojan se virakt hai
क्षुब्ध तो उच्चतम न्यायालय भी है।
शर्म हमें क्यों नहीं आती ....
आभार इस "कम ऑन वेल्थ!" गेम पर अप डेट के लिए।
आचार संहिता से बंधा हूं। थोड़े में ही समझिए।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
चक्रव्यूह से आगे, आंच पर अनुपमा पाठक की कविता की समीक्षा, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
नमस्कार.....
संज्ञान लेने के लिये उनका आभार !
कम से कम न्यायलय की तो सुनें ...
ये हो क्या गया है? कहीं हम सपना हे तो नहीं देख रहे?
ओह... आज पूरे दिन चैनलों पर अयोध्या निर्णय छाया रहा शायद इसीलिए कहीं भी यह खबर नहीं दिखी.
यह बताने के लिए आपका आभार.
chintneey mudda.........
charcha bhee ho jaegee.......
vaad vivad........aur fir vyastatavash chuppee.......
aur kar bhee kya sakte hai.........
aam aadmee rajneeti naa kar sakta hai na samjh hee sakta hai.
Ha Rajneeti ka shikar ho sakta hai......
ye ek di ka dur hai...........
Jitni phatkaar mile kam hai...behad sharmnaaq ghatnayen ghati hain..aapko ek article forward karna chahti hun...jahan pata chalega ki,pichhale 29 salon se uchhtam nyayalay kee tauheen ho rahee hai aur sab khamosh hain.Kuchh BSF ke retired afsar hain jo ekaki ladayi lad rahe hain.
नियमों की अनदेखी कर जो काम होते हैं उनकी जांच होनी ही चाहिए और अगर पैसों का दुरुपयोग किया गया है तो सजा मिलनी ही चाहिए फिर किसी भी पोस्ट का मामला क्यों न हो ...
नेता के हाथ देश सिर्फ लुट रहा है. पहली टिप्पणी गौर करने लायक है. न्यायालय ही उम्मीद.....
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