सम्वेदना के स्वर

यह ब्लॉग उस सनातन उत्सवधर्मिता को जीवित रखने का प्रयास है,

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Monday, September 27, 2010

सी डब्ल्यू जी की सी.आई.डी. जाँच – भाग 2


(ब्यूरो में, पूरी टीम मौजूद है, फ्रेडरिक्स कुर्सी पर बैठा ऊँघ रहा है. विवेक कम्प्यूटर के कुछ कीज़ खटखटाता है और इंतज़ार करता है.)

विवेकः (मॉनिटर की तरफ देखते हुए) सर! इसका रिकॉर्ड तो है हमारे पास.
प्रद्युम्नः गुड! बताओ, क्या पता चला इसके बारे में.
विवेकः सर! यह सी.डब्ल्यू.जी. तो खिलाड़ियों का खिलाड़ी है. यह कुछ सालों के गैप में अलग अलग मुल्कों में दिखाई देता है और हर मुल्क में इसका काम ठेके पर एक पूरी टाउनशिप बनवाने का है. इसने हमारे देश में एक नई कॉलोनी और पूरी टाउनशिप बनवाने के लिए 2003 में टेंडर निकाला था. और यह कॉन्ट्रैक्ट एक कालमेडिल एण्ड कं. को दिया गया था. इसने यमुना के किनारे का पूरा इलाका साफ करवा कर यह कॉलोनी बनाने की जगह देखी थी.

दयाः और सर, यमुना किनारे उसी कॉलोनी से हमें वह बॉडी मिली है.
अभिजीतः अब समझा उस के वॉलेट से निकले कागज़ के टुकड़े पर जो “काल” लिखा था उसका मतलब है कालमेडिल एण्ड कं.
प्रद्युम्नः (हँसते हुए) हा हा हा! अभिजीत!! अब मेरी समझ में सब बातें आ गईं. काल का मतलब है कालमेडिल एण्ड कं., 114 का मतलब है कि इस कम्पनी ने कॉन्ट्रैक्ट की रकम से 114 गुना ज़्यादा ख़र्च कर दिया और इसपर अब तक 70000 करोड़ रुपये ख़र्च हो गये हैं. याद है अभी हाल ही में किसी विदेशी चैनेल ने यह ख़बर दिखाई थी… (उँगली घुमाते हुए) क्या नाम था उसका..!
विवेकः उसका नाम माइक था सर! इस कम्प्यूटर में ये सारी बातें भी हैं.
दयाः हो न हो यह किसी ब्लैकमेलिंग का केस लगता है. कॉन्ट्रैक्टर ने इस सी डब्ल्यू जी को और कीमत देने के लिए ब्लैकमेल किया होगा. वह और पैसे नहीं देना चाह्ता होगा, क्योंकि पहले ही सत्तर हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च हो चुके हैं. तो उसने कोर्ट की धमकी दी होगी और फिर कालमेडिल एण्ड कं. के पार्टनर्स ने इसका ख़ून करने की कोशिश की होगी.
अभिजीतः विवेक! पता लगाओ, इतने सारे रुपये ख़र्च कहाँ कहाँ हुए और क्या क्या काम हुए. क्योंकि एक पूरी टाउनशिप पर होने वाले ख़र्च का कुछ तो हिसाब होगा.
ताशाः सर यही तो सारा खेल है कि काम के हिसाब से ख़र्च ज़्यादा बताया है और हिसाब के नाम पर कोई रिकॉर्ड नहीं. मुझे तो लगता है कि यही फ़साद कि जड़ है.
अभिजीतः एक काम करो. इस कम्पनी के जितने भी ऑफिसर्स हैं, उन सबकी लिस्ट चाहिए मुझे. देखते हैं इसमें से कौन है असली अपराधी.
प्रद्युम्नः कोई भी हो अभिजीत, सी आई डी से बचकर कहाँ जाएगा.
विवेकः (चिल्लाता हुआ) सर इस पूरी कम्पनी में सिर्फ एक औरत है जिसका नाम है मिस डी. पूरा नाम कहीं भी नहीं आया है. लेकिन इसका उठना बैठना काफी बड़े लोगों में है. बताते हैं बहुत सख़्त टाइप की औरत है और बगैर इसकी मर्ज़ी से इस कम्पनी में कोई पत्ता भी नहीं हिलता.
प्रद्युम्नः तुम लोग एक काम करो. यमुना किनारे जो कॉलोनी बनी है वहाँ जाकर देखो,एक एक फ्लैट,एक एक कमरे को छान मारो. कुछ न कुछ तो मिलेगा ही वहाँ.

(पूरी टीम ब्युरो से बाहर निकल जाती है. अगले सीन में सब के सब यमुना के किनारे बनी एक नई टाउनशिप में दिखाई देते हैं)


ताशाः सर यह तो बिल्कुल नई कॉलोनी है.
अभिजीतः किसी एक कमरे में देखते हैं कि कुछ पता चल सकता है क्या.

(सभी हाथ में अपनी अपनी पिस्तौल निकालकर दरवाज़े को धकेलते हैं. दरवाज़ा खोलते ही अंदर से कुछ कुत्ते निकल कर भाग जाते हैं)

प्रद्युम्नः सब लोग फैल जाओ और अच्छी तरह जाँच करो. देखो यहाँ कुछ मिलता है क्या!
फ्रेडरिक्सः सर यहाँ आइए! बिस्तर पर कुछ बाल और कुछ अजीब से निशान मिले हैं.
अभिजीतः सर! यह तो कुत्तों के पंजों के निशान हैं. और बाल भी शायद उन्हीं कुत्तों के हों. क्योंकि बालों का रंग भूरा है और अभी यहाँ कोई विदेशी नहीं आया है रहने.
 प्रद्युम्नः बालों को फॉरेंसिक लैब भिजवा दो, इसका डीएनए टेस्ट करवा के देखते हैं.
दयाः (दूसरे कमरे से) अभिजीत! इधर आओ. ये देखो क्या हो रहा है यहाँ.

(सब दूसरे कमरे जाते हैं, जहाँ खुली खिड़की से बाहर का दृश्य दिखाई देता है)

दयाः वो देखो, चार पाँच लोग मकान की दीवार पर पेशाब कर रहे हैं.
फ्रेडरिक्सः सर, वो जो आदमी मुड़ा है अभी, उसके गले में आई कार्ड झूल रहा है. (पढने की कोशिश करते हुए) अरे! ये तो कालमेडिल एण्ड कं. के ऑफिसर्स हैं.
प्रद्युम्नः बुलाओ इन सभी को ब्यूरो में. ज़रा इनसे पूछ्ते हैं कि मामला क्या है.

(कालमेडिल कं. के सारे ऑफिसर्स एक गोल मेज के चारों ओर बैठे हैं और उनसे पूछताछ चल रही है)

अभिजीतः ये क्या चल रहा है आपके बनाए नए क्वार्टर्स में. विदेशियों के लिए जो बेड हैं, उनपर कुत्ते सो रहे हैं, और हमने अपनी आँखों से देखा है, आप सब को उन क्वार्टर की दीवारों पर पेशाब करते हुए.
1 अधिकारीः देखिए आपको पता है कि हमारे देश कि 70% जनता खुले में यह सब काम करती है. फिर हम भी तो उसी देश के नागरिक हैं, इसमें बुराई क्या है.
दयाः अभी ये हाथ पड़ेगा तो सब बुराई समझ में आ जाएगी. वो जगह तेरे लिए नहीं, विदेशियों के लिए है. इस अनहाइजीनिक माहौल में रखेगा उनको.
1 अधिकारीः उनके और हमारे हाइजीन के स्टैंडर्ड में बहुत फ़र्क है. हमें तो अपने हिसाब से सब देखना पड़ता है. हम कहाँ बीमार होते हैं, इन सब से.
2 अधिकारीः और आप हाथा पाई मत कीजिए, हम इज़्ज़तदार लोग हैं. आप जिनसे बात कर रहे हैं वो देश के अंदर की सारी धोखाधड़ी की जाँच करते हैं. और आप की जाँच भी यही करेंगे.
प्रद्युम्नः हमें धमकी देता है. सी आई डी को धमकी देता है. ये वही है न जिसके ऊपर ख़ुद भ्रष्टाचार के मुक़दमे चल रहे हैं.
2 अधिकारीः सब बकवास है, उन सब मामलों से यह बरी हो गए हैं.
विवेकः (अपने कम्प्यूटर पर खटखटाते हुए) सर! इनके ऊपर अठारह साल से एक मुकदमा अभी भी चल रहा है, उसमें इसको अभी तक बरी नहीं किया गया है.
प्रद्युम्नः (उँगली घुमाते हुए) देखा, सारी जनमपत्री है तेरी हमारे पास.
ताशाः सर! अभी अभी ख़बर मिली है कि इस कम्पनी ने टाउनशिप के लिए जो छोटा पुल बनाया था, वो टूट कर गिर पड़ा और कई लोग घायाल भी हो गए.
3 अधिकारीः ऐसी घटनाएँ होती रहती है, और हमने उन मज़दूरों को भर्ती भी करवाया है हस्पताल में. हम मज़दूरों का पूरा ख़याल रखते हैं.
फ्रेडरिक्सः (हाथ में काग़ज़ लेकर पढते हुए) अभिजीत! अभी अभी फैक्स आया है, हमारे ख़बरी ने भेजा है. इसके मुताबिक़ जहाँ मज़दूरों को रु.203 हर रोज़ के मिलने चाहिए, वहाँ ये कालमेडिल कम्पनी के लोग सिर्फ 103 रुपये रोज़ की पेमेंट कर रहे हैं.
विवेकः ये देखिए सर! ये मेल अभी तुरत आई है. टाउनशिप के कम्युनिटि हॉल की छ्त का एक हिस्सा अंदर से गिर पड़ा.
प्रद्युम्नः अब क्या कहना है तुम्हारा! ये सब रोज़ होने वाली छोटी छोटी घटनाएँ हैं.
3 अधिकारीः (सिर झुकाकर) सर! अब हम क्या कहें,हमारे बस में जो था वो हमने किया है. यह सब कालमेडिल साहब के हुक़्म से हुआ है.
फ्रेड्रिक्सः (धीरे से एसीपी के कान में कहता है) सर! अभी अभी मैडम डी का फोन आया है. उन्होंने कहा है कि ये सब कालमेडिल का किया है और हम जब यह पूरा प्रोजेक्ट सी डब्ल्यू जी को सौंप देंगे तब इस बकरे को हलाल कर दिया जाएगा.
प्रद्युम्नः हम किसी को कानून हाथ में नहीं लेने देंगे. और यह प्रोजेक्ट सी डब्ल्यू जी के हवाले होगा कैसे, उसके पहले तो तुमने उसे ब्लैकमेल करने और क़त्ल करने की कोशिश की… अभी तक वो बेचारा कोमा में है.
अभिजीतः वो भी बेचारा नहीं है सर. अभी ग्रीस में पिछले दिनों इसके बड़े भाई ओलिम्पिक ने ठीक ऐसी ही टाउनशिप बनवाने का खेल खेला था और वहाँ की इकोनॉमी पूरी तरह डूब गई.
दयाः अमिताभ बच्चन ने भी इसका साथ दिया था एक छोटी सी कॉलोनी बनाने में,और यह उनको ऐसा लूट ले गया कि बरसों लग गए उनको सम्भलने में.
प्रद्युम्नः (सोचते हुए, छत की तरफ देखकर) माई गॉड!! इतनी बड़ी साज़िश!!

(तभी फोन बजता है, और उधर से फोन पर आवाज़ सुनाई देती है)

आवाज़ः क्या आप ए सी पी प्रद्युम्न बोल रहे हैं?
प्रद्युम्नः यस प्लीज़! आप कौन?
आवाज़ः देखिए मैं सिटी हॉस्पिटल से बोल रही हूँ. आपके पेशेंट को होश आ गया है. आप फौरन यहाँ चले आइए.

(फोन रखने की आवाज़, और सारे ऑफिसर्स भागते हुए बाहर निकल जाते हैं. अगले सीन में हॉस्पिटल की लॉबी और डॉक्टर के लिबास में एक आदमी प्रद्युम्न से मुख़ातिब)

डॉक्टरः (दूसरे की डब की हुई आवाज़ में) देखिए सर, इसकी हालत में बहुत तेज़ी से सुधार हो रहा है. इसे आप चमत्कार ही कहिए, या लोगों की प्रार्थना.
अभिजीतः क्या हम लोग उससे मिल सकते हैं?
डॉक्टरः जी नहीं! अभी वो होश में नहीं है. लेकिन दवाएँ अपना काम कर रही हैं. जितने ज़ख़्म हैं उनपर किसी तरह पट्टियाँ लगाकर उनको बंद कर दिया गया है. अंदरूनी चोटों को भी किसी तरह हमने दबा दिया है. अब अगर यह तीन अक्तूबर तक होश में आ गया, तो समझिए कि पंदरह दिन तक इसके ठीक हो जाने की पूरी गारण्टी है.
प्रद्युम्नः थैंक्स डॉक्टर! वैसे भी इसका वीसा 18 तारीख़ के बाद समाप्त होने वाला है.
दयाः लेकिन सर! हम इस केस में किसी को पकड़ नहीं पाए.

प्रद्युम्नः जब मौत हुई ही नहीं तो क़त्ल कैसा..और जब क़त्ल नहीं तो ख़ूनी कहाँ से लाओगे. अफसोस तो इस बात का है यह 18 तारीख के बाद फिर से फ़रार हो जाएगा और फिर से यही खेल पता नहीं कहाँ और किस नाम से खेलेगा. किस मुल्क को तबाह करेगा और कोई इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा. कभी सोचा है इंसान जब अपने कमाए पैसे अपने लिए ख़र्च करता है, तो उसकी वैल्यू देखता है, दूसरे के लिए करता है तो कीमत देखता है. लेकिन जब दूसरे के पैसे, किसी और पे ख़र्च करना हो तो कुछ नहीं देखता.
(समाप्त)

पुनश्चः इस नाटक के सारे पात्र, स्थान तथा घटनाएँ काल्पनिक हैं. किसी भी व्यक्ति, जीवित अथवा मृत, स्थान या घटना से अगर कोई भी मेल पाया जाता है तो वह मात्र सन्योग होगा!

21 comments:

मुकेश कुमार सिन्हा said...

uff!! itna gambhir vivechan..........shandaar!!

waise main isme ittefak nahi rakhta hoon.........kyonki mera manana hai abhi Commonwealth ko hone dete hain.........aur hamare wishes ki jarurat bhi hai commonwealth ke achchhe dhang se hone kliye.....:)

lekin aap sach me shandaar ho!!

sir ek gujarish hai, kabhi kabhi hamare post pe bhi aa kar galtiyan nikalen!!

kshama said...

Kya maza aata gar in dono kishton ka filmankan hota! U Tube pe dekh pate!
Jaise bina palak jhapke padh dala,waisehi bina palak jhapke dekh lete!

Apanatva said...

bahut khoob!
expectations bad gayee hai ..........

सम्वेदना के स्वर said...

पूर्व खेल मंत्री मणिशंकर अय्यर का कहना है कि यह खेल मूलत: बवाना क्षेत्र में कराने की योजना थी, ताकि दिल्ली का यह अपेक्षाकृत पिछड़ा इलाका सुविधा समपन्न हो सके पर निहित स्वार्थवश इनका स्थान नई दिल्ली के आस पास रखा गया ! इन खेलों के नाम पर जो बुनयादी ढाचा बनाने का दावा किया है, उस पर 70,000 करोड़ रुपये का खर्च बताया जा रहा है। सबको मालूम हो कि इस देश की गरीबी को दूर करने के नाम पर जारी “नरेगा योजना” के तहत इस साल का प्रावधान 40,100 करोड़ है।

उम्मतें said...

पहले भी कहा है कि आपने एक बेहद रोचक शैली में मुद्दे को हिट किया है ! आपकी मेहनत को सलाम !

कविता रावत said...

नाटक के पात्र भली ही काल्पनिक हों लेकिन वर्तमान हालातों की बेहद रोचक और सार्थक प्रस्तुति साफ़ दृष्टिगोचर होती है जो एक सामाजिक संवेदनशील लेखक की धरोहर होती है... बहुत दिन बाद कोई नाटक पढ़ा .. पढ़कर बहुत ही अच्छा .इसके लिए बहुत धन्यवाद

स्वप्निल तिवारी said...

kya kahun ,,,,,adbhut lekhan hai ...saaf dikhayi padta hai ki kitna vyathit hain aap is avyawastha ko lekar..hona bhi chahiye ...khair aap ne apni vytha ko creativity ke sath jodkar ek umda natak likha hai .... shandaar hai yah rachna .....

प्रवीण पाण्डेय said...

राम नाम जपना, पराया -- अपना।

रचना दीक्षित said...

बहुत अच्छी और रोचक प्रस्तुती.इसको तो जीना ही होगा आखिर ३ अक्तूबर का जश्न जो देखना है.भगवन करे ये १५ दिन पूरी हंसी ख़ुशी और सौहार्द्र से निकल जाएँ. अंत भला तो सब भला

VICHAAR SHOONYA said...

बहुत ही रोचक और मजेदार तरीके से अपने अपनी बात को रखा है. इस के लिए आप को बधाई. आपकी कल्पना शक्ति को सलाम.

sonal said...

kamal hai ek dam dhamakedaar

संजय @ मो सम कौन... said...

आपका ये अंदाज बहुत भाया।
यकीन मानिये, अब अगला टार्गेट ओलंपिक का होगा। आप पूरी फ़िल्म की तैयारी रखिये उस मौके के लिये।

Rohit Singh said...

भाई मेरे आप एक सीरियल बनाइए, एसीपी वाला रोल मुझे देना। हां सेक्रेटरी भी मेरी ही होगी, उस डॉक्टर की नहीं, क्योंकि मैं सिंगल हूं। बाकी जितने छड़े ब्लॉगर हैं उनको विवेक, अभिजीत औऱ दया वाले रोल देंगे बारी-बारी। अपने बॉस से जलने का रोल भी वो ठीक से निभा ले जाएंगे। आप तो खैर कोई रोल मत मांगिएगा, बस सुभाष घई की तरह एक सीन कर लीजिएगा,,क्योंकि आप तो डायरेक्टर होंगे। ऐसी ही बाकी के लिए सोच लेंगे। ठीक है मुहुर्त निकाल कर सूचित कर दीजिएगा, दिल्ली में पैसे लेकर मैं इंतजाम कर लूंगा।

Urmi said...

मैं जब भारत में थी तब सी आई दी रोजाना देखती थी और मेरा पसंदिदार कार्यक्रम हुआ करता था! पर अब तो ऑस्ट्रेलिया में रहकर देखना संभव नहीं है! अच्छा लगा सुनकर! बहुत ही सुन्दर और रोचक प्रस्तुती !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत खूब , क्या करे इन्होने तो इस देश को ही एक रंगमंच बना डाला है !

ZEAL said...

.

चैतन्य जी,

एक बेहद खूबसूरत अंदाज में लिखी हुई सुन्दर प्रस्तुति। सच्चाई को सामने लाती हुई इस प्रस्तुति का मंचन भी होना चाहिए। रोहित जी की बात से सहमत हूँ। मुझे भी कोई अच्छा रोल दीजियेगा।

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दिगम्बर नासवा said...

पुनश्चः इस नाटक के सारे पात्र, स्थान तथा घटनाएँ काल्पनिक हैं. किसी भी व्यक्ति, जीवित अथवा मृत, स्थान या घटना से अगर कोई भी मेल पाया जाता है तो वह मात्र सन्योग होगा ...

मुझे लगता है सब कुछ सच है ... सिवाए नाम के ... बस वो ही बदले गये हैं .... असली में खेला गया नाटक है ...
मज़ा आ गया आपकी व्यंग धार देख कर .....

shikha varshney said...

व्यवस्था के प्रति आक्रोश स्वत: दिखाई पड़ रहा है नाटक में भाषा शैली बहुत रोचक है ..कुल मिलाकर हिट है ..

soni garg goyal said...

mera comment kaha gaya ???

मनोज भारती said...

सलिल जी !!! आपके लेखन को नमन. बहुत ही गठी हुई शैली में आपने मुद्दे को रखा है । हमें अन्य विधाओं में भी आपकी लेखनी की रोशनाई का इंतजार रहेगा ।

Satish Saxena said...

वाकई बढ़िया रचना ....कृपया जारी ...अपनी रचनाओं के प्रसंशकों को निराश न करें !
सस्नेह

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