सम्वेदना के स्वर

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Saturday, September 25, 2010

डॉ. कन्हैया लाल नंदन – एक श्रद्धांजलि

(जन्मः 01 जुलाई 1933 निधनः 25.09.2010)


ज़िंदगी चाहिए मुझको मानी भरी
चाहे कितनी भी हो मुख़्तसर चाहिए.

और अगर सतहत्तर साल की ज़िंदगी को मुख़्तसर कहें तो, यह कहना पड़ता है कि इस मुख़्तसर सी ज़िंदगी के सफ़र का वह मुसाफिर, चल पड़ा है एक अनजान से सफ़र पर. शायद दुआ क़बूल हो गई उस परमपिता के दरबार में. एक मुख़तसर सी ज़िंदगी और सचमुच मानी भरी ज़िंदगी. आज 25 सितम्बर 2010 को सुबह 03:10 बजे डॉ.कन्हैया लाल नंदन की आत्मा ने शरीर त्याग दिया, चोला माटी का.

डॉ. नंदन का जुड़ाव हम अपने बचपन और बड़े होने के उन दिनों में पाते हैं जब हम धीरे धीरे बुद्धिजीवि होने लग पड़े थे. बचपन में टाइम्स ऑफ इण्डिया की पत्रिका पराग, शायद आज भी रची बसी है, हमसे और हमारे बचपन से. फिर आया धर्मयुग का युग. एक मुकम्मल पत्रिका, जिसमें कहानी, कविता, लेख, उपन्यास का ऐसा ख़ूबसूरत ब्लेंड देखने को मिलता था कि आज भी उस पत्रिका के ख़ालीपन को कोई नहीं भर पाया. दिनमान हिंदी में समाचार की सम्पूर्ण पत्रिका. याद है जब ख़बरों और ख़ास तौर पर हिंदी ख़बरों के लिए बीबीसी पर भरोसा था, ऐसे में प्रिंट मीडिया में हिंदी ख़बरों के लिए बस दिनमान.

हिंदी पत्रकारिता और साहित्य यह दिनमान, कन्हैया लाल नंदन आज प्रातः काल ही अस्त हो गया. यह वास्तव में साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति है. ख़ास कर तब, जब हम इस माह को हिंदी माह के तौर पर मना रहे हैं.

पहली जुलाई 1933 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर ज़िले में जन्मे कन्हैया लाल जी, श्री यदुनंदन तिवारीजी के कुलदीपक थे. बीए,एम ए और फिर पीएच डी करके डॉक्टर कन्हैया लाल नंदन हुए. पत्रकारिता की, उपन्यास, लेख और कविताएँ लिखीं. कितने पुरस्कार और सम्मान हासिल किए. बचपन से रामलीला में अभिनय करना और गीत संगीत की मंडली में शामिल होना. गाते भी बहुत अच्छा थे और जैसा कि हर कलाकार के साथ होता है, राम लीला में अभिनय भी करते थे.

लक्षमण का रोल मिला तो ख़ुश हुए कि चलो सीता के रोल से छुटकारा मिला. मगर जब इनके तिवारी जी की साइकिल ठगों ने चोरी कर ली और तमाम कोशिशों के बाद भी जब ये बचा नहीं पाए, तो इन्होंने रामलीला छोड़ दी. कहने लगे जब तिवारीजी की साइकिल नहीं बचा सका तो लक्षमण बनने का क्या फ़ायदा.

मंच पर कविता पाठ का इनका अंदाज़ बहुत ही शांत था. गम्भीर कविताएँ पढते हुए भी इनके मुख पर एक शालीन मुस्कुराहट हमेशा दिखाई देती थी.चश्मे के अंदर से झाँकती इनकी आँखों में एक अजीब सी शोखी थी, जो इनके ज़िंदादिल होने का ज्वलंत प्रमाण थी.

वे आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जो रिश्ता उन्होंने हमारे बचपन से जोड़ा था वो शायद एक पत्थर पर बनी लकीर है, जिसे हमारे दिल से मिटाना सम्भव नहीं.

ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे!!

एक कविताः

ज़िन्दगी की ये ज़िद है
ख़्वाब बन के
उतरेगी।
नींद अपनी ज़िद पर है
- इस जनम में न आएगी
दो ज़िदों के साहिल पर
मेरा आशियाना है
वो भी ज़िद पे आमादा
-ज़िन्दगी को
कैसे भी
अपने घर
बुलाना है।

-कन्हैया लाल नंदन

35 comments:

सम्वेदना के स्वर said...

इस दुखद घटना के कारण हम अपनी पूर्वनिर्धारित पोस्ट कुछ दिनों के लिये स्थगित कर रहे हैं।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

“फिर यह शख्सह (कन्हैया लाल नंदन) साप्ताहिक ‘संडे मेल ‘का हेड ड्राइवर, ग्रेड वन होकर आया! तब मैं सिर्फ स्टेशन मास्टर था। गोरखपुर कवि सम्मेलन के दौरान, रेलवे गेस्ट हाउस में हुक्म फेंका- ‘संडे मेल’ का एक रेगुलर लिखो! पर तो आपके कब के गिर चुके,बेपर की उडा़ओ’ मैंने लंबे अर्से तक ‘बेपर की’ कालम लिखा! लोगों ने मजा लिया! नंदन को कैसा लगा,पूछे मेरी बला! पाठक सुलेमान तो लेखक पहलवाऩ! दो बार मिली नंदन की इस धारावाहिक मुहब्बत का मैं कायल हूँ…रहूँगा।”-के.पी.सक्सेना

गुरुदेव के. पी. सक्सेना का स्व. कन्हैया लाल नंदन जी के प्रति यह उद्गार उनके भागिनेय श्री अनूप शुक्ल के ब्लॉग से चोरा लाए हैं हम. कहते हैं चोराए हुए फूल से श्रद्धांजलि नहीं दिया जाता है. किंतु एक महान साहित्यकार जिनसे बचपन जुड़ा हैं, बच्चे का भूल क्षमा कर देंगे. पराग वह पत्रिका था जो हमको हमरा गुरु के. पी. सक्सेना दिया .मेरे लिए तो नंदन जी गोविंद समान हैं, आज भी जब वे गोविंद में समा गए हैं.

दीपक बाबा said...

पुष्प अर्पित,

हृदय से श्रद्धांजलि..............

इनको पढ़ कर जिया तो बहुत है - कुछ लिख नहीं सकते.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नंदन जी को हृदय से श्रृद्धांजलि ...ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे

VICHAAR SHOONYA said...

शायद कन्हैया लाल नंदन जी ने हिंदुस्तान प्रकाशन समूह कि बाल पत्रिका "नंदन" का भी संपादन किया है. बचपन में मैं इस पत्रिका को पढता था. कन्हैया लाल नंदन जी को मेरी भाव भीनी श्रद्धांजलि.

संजय @ मो सम कौन... said...

बचपन तो हमारा भी डा. नंदन की संपादित पुत्कें पढ़ते बीता है, अलबत्ता पर्दे के पीछे की इतनी जानकारी अपने को नहीं थी।
साहित्य जगत को हुई इस अपूरणीय क्षति की पूर्ति होना लगभग असंभव है।
डा कन्हैया लाल नंदन को हमारी तरफ़ से भी श्रद्धांजलि।

राजेश उत्‍साही said...
This comment has been removed by the author.
राजेश उत्‍साही said...

नंदन जी तो हमेशा रहेंगे। उन्‍होंने 'नंदन' का संपादन तो कभी नहीं किया हां बहुत कम समय के लिए वे 'पराग' के संपादक रहें हैं। दिनमान के बाद उनके संपादन में निकली जिस पत्रिका की याद आती है वह 'सारिका'। कमलेश्‍वर ने जब 'सारिका' को अलविदा कहा तो नंदन जी ने ही उसकी बागडोर संभाली। हालांकि कमलेश्‍वर ने सारिका को जिस मुकाम पर पहुंचाया था,वहां उसे बना रखना बहुत चुनौतीपूर्ण था। नंदन जी ने सारिका के विशेषांकों की एक झड़ी सी लगा दी थी। कुछ की बहुत प्रंशसा हुई और आलोचना भी। उन दिनों लघुकथा आंदोलन का दौर था। 1982 में होशंगाबाद में हम कुछ साथियों ने मिलकर एक अखिलभारतीय लघुकथाकार सम्‍मेलन करवाया था, उसमें हम लोग कन्‍हैयालाल नंदन को लाने में कामयाब रहे थे।
वे ऐसी शख्सियत के तो मालिक थे कि हमेशा चर्चा में रहे। उनका होना जितना चुनौतीपूर्ण था,न होना उससे कहीं ज्‍यादा चुनौतीपूर्ण होगा।

September 25, 2010 6:08 PM

सम्वेदना के स्वर said...

@ राजेश उत्साहीः
बड़े भाई यह सच है कि उन्होंने नंदन का सम्पादन कभी नहीं किया, नंदन हिंदुस्तान टाइम्स की पत्रिका थी. सारिका के विशेषांक आज भी स्मृति में जीवंत हैं, मण्टो, देहव्यापार कथा, लघु कथा, विदेश की कथाएँ और न जाने कितने. पराग का एह्सान मंद इस्लिए भी हूँ कि इस पत्रिका ने मुझे मेरा गुरु मुझे दिया के पी सक्सेना. और इसके लिए नंदन जी का आभारी हूँ. उनके मंच पर पढने का अंदाज़ भुलाए नहीं भूलता, एकदम ज़िंदादिल इंसान!!

RADIO SWARANGAN said...

यह समाचार अत्‍यंत दुखद है । 'संडे मेल' का मैं नियमित पाठक रहा । 'धर्मयुग' की कमी तो अखरती ही रही है । अब शब्‍दों में तो ज्‍यादा कहा नहीं जा सकता । ईश्‍वर उनकी आत्‍मा को शांति प्रदान करें, हम सब के हृदय में वह हमेशा रहेंगे और उनके विचार हमें प्रेरित करते रहेंगे ।

36solutions said...

श्रद्धांजली.. रचनाधर्मी श्री कन्‍हैयालाल नंदन जी अमर रहें.

उम्मतें said...

श्रद्धा सुमन !

मनोज कुमार said...

पराग पढकर हम बड़े हुए। जो भी थोड़ी बहुत अच्छी सोच, और साहित्य लिखने की प्रवृत्ति जमीं वहीं से आया। और उसके आगुआ थे नंदन जी।
आज यह दुखद समाचार आपके ब्लॉग से पता चला।
सच में मन व्यथित है।
नंदन जी को कोटि-कोटि नमन।

Dr. Kumarendra Singh Sengar said...

साहित्य के नए कलमकारों को तो शायद इस शख्शियत के बारे में ज्ञात भी नहीं होगा?
ये वाकई अपूरणीय क्षति है.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

राजेश उत्‍साही said...

मैं यह जोडना चाहता हूं कि पराग को याद किया जाता है आनंदप्रकाश जैन जी के संपादन के लिए। नंदन जी तो बहुत ही कम समय के लिए उसके संपादक थे। कुछ समय उसे संपादित किया था सर्वेश्‍वर दयाल सक्‍सेना ने। और पराग के आखिरी दिनों में उसके संपादक थे डा.हरिकृष्‍ण देवसरे।
इसमें कोई शक नहीं पराग बच्‍चों के लिए एक श्रेष्‍ठ पत्रिका थी। उसका अभाव आज तक अखरता है।

प्रवीण पाण्डेय said...

महान दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि।

सम्वेदना के स्वर said...

@ राजेश उत्साहीः
आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत… स द स (सर्वेश्वर दयाल सक्सेना) और हरिकृष्ण देवसरे भी सही हैं. लेकिन के पी को लाने वाले नंदन जी ही थे. के पी के सीरियल ख़लीफा तरबूज़ी का बहत्तर साल का बच्चा. जब नंदन जी ने सण्डे मेल शुरू किया तो उसमे के पी ने “बेपर की” लिखना शुरू किया उनके अनुरोध पर. और तभी उन्होंने कहा था कि “दो बार मिली नंदन की इस धारावाहिक मुहब्बत का मैं कायल हूँ…रहूँगा।” बस उन्हीं दिनों का ज़िक्र किया था मैंने.

अविनाश वाचस्पति said...

विनम्र श्रद्धांजलि।
पर नंदन जी
विचारों के रूप में
यहीं हैं और
यहीं रहेंगे
सदा सर्वदा।

मनोज भारती said...

डॉ.कन्हैया लाल नंदन जी का जाना हिंदी साहित्य के लिए एक बड़ी क्षति है । उन्होंने बच्चों के लिए विपुल साहित्य की रचना की । उनकी बचपन में पढ़ी और सस्ता साहित्य मंडल द्वारा प्रकाशित एक किताब "दूध का तालाब" आज भी मेरे पास सुरक्षित है ।

वे एक अच्छे संपादक रहे । वे उन साहित्यकारों में रहे जिन्होंने कभी किसी गुटबाजी का न समर्थन लिया और न ही दिया । वे एक अच्छे कवि भी थे । पराग को 1984-85 से बंद होने तक मैं भी यदा कदा पढ़ा हूँ ।

वे सरल ह्रदय के व्यक्ति थे । वर्ष 2005 के नवम्बर 2005 में, एक कवि सम्मेलन में उनसे चंडीगढ़ में मिलना हुआ था ।

उन्हें हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि ।

@ सलिल जी नंदन पत्रिका का प्रकाशन आज भी जारी है ।

सम्वेदना के स्वर said...

@मनोजभारतीः
नंदन पत्रिका का ज़िक्र इस पोस्ट की संजीदगी को कम कर रहा है. एक घटना याद आ गई. मीना कुमारी की मौत पर जब उनको दफ़नाने सारे लोग क़ब्रिस्तान पहुँचे तो माहौल मातमी था. और इस माहौल में भी दो बड़े शायर (उनका नाम लेकर उनकी रूह को तक़लीफ नहीं पहुँचाना चाहता) एक शेर पर उलझे थे कि यह शेर दाग़ का है कि मजाज़ का.
नंदन पत्रिका आज भी प्रकाशित होती है, इससे कहाँ इंकार किया है हमने. इसकी सम्पादक मृणाल पाण्डे हैं या शायद अब न हों. हाल हाल तक कादम्बिनि और नंदन दोनों की सम्पादक वो थीं (हैं).

Rohit Singh said...

मैं कहने ये आया था कि शायद आपने मेरी पोस्ट ठीक से नहीं पड़ी। पर आते ही धक्का लगा....इसलिए नंदनजी का जाना पता नहीं था....आज छुट्टी पर खबरों की दुनिया से दूर था। वैसे मैं नंदनजी से कभी नहीं मिला। पर जानता रहा उनके बारे में कई लोगो के माध्यम से। उस शांत औऱ अमर आत्मा को श्रद्दाजंलि।

Akshitaa (Pakhi) said...

पुष्प अर्पित... श्रद्धांजलि !!

Udan Tashtari said...

नन्दन जी आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना एवं श्रृद्धांजलि!

सादर

समीर लाल

राजभाषा हिंदी said...

कन्हैया लाल नंदन जी को भाव भीनी श्रद्धांजलि!बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
कहानी ऐसे बनी– 5, छोड़ झार मुझे डूबन दे !, राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें

Satish Saxena said...

इनका नाम अमर रहेगा ! हार्दिक श्रद्धांजलि

Apanatva said...

श्रद्धा सुमन !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

कन्हैया लाल नंदन जी को भाव भीनी श्रद्धांजलि!
..जितनी अच्छी पोस्ट उतनी ज्ञानवर्धक टिप्पणियाँ। नंदन जी ने धर्मयुग को बुंलदी पर पहुंचाया। सारिका की याद आते ही लघुकथाओं की याद स्वतः आ जाती है। वह भी क्या जमाना था कि हिंदी का कमजोर विद्यार्थी भी धर्मयुग, हिंदुस्तान,सारिका और पराग जैसी पत्रिकाओं का दीवाना था। लम्बे अंतराल से इस कमी को कोई पूरा नहीं कर सका।

शिवम् मिश्रा said...

विनम्र श्रद्धांजलि!

rashmi ravija said...

कन्हैया लाल नंदन जी को विनम्र श्रद्धांजलि!..ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे

लोकेन्द्र सिंह said...

महान दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि।

Shabad shabad said...

नन्दन जी आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना ..
पुष्प अर्पित एवं श्रृद्धांजलि!

मनोज भारती said...

@ राजेश उत्साहीः
बड़े भाई यह सच है कि उन्होंने नंदन का सम्पादन कभी नहीं किया, नंदन हिंदुस्तान टाइम्स की पत्रिका थी.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

विनम्र श्रद्धान्जलि.

shikha varshney said...

नंदन जी को ह्रदय से श्रधांजलि.

दिगम्बर नासवा said...

समय ने एक अमूल्य निधि हम से छीन ली है .... ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे ...

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