होली का त्यौहार, मची धूम चारों ओर है जी, देख-देख रंग की बौछार मन डरता है.
देश पर भ्रष्ट नेताओं का है काला रंग, आतंक की आग में ये देश देखो जरता है.
रंग सतरंगी, इन्द्रधनुष सरीखे थे कल, आज भगवा तो हरा शोर कोई करता है.
महंगाई ने जो तोड़ रखी है कमर सब की, जनता का पेट आधा चौथाई ही भरता है.
गोरी की कलाई सूनी, चूड़ियाँ नहीं हैं सजी, श्याम भी सहम के कलाई आज धरता है.
फटी हुयी चूनर से झांकता यौवन और रीत गयी गागर से जल भूमि परता है.
माल तो समाप्त हुआ, पूआ बेसवाद हुआ, बालूशाही में से बालू-सा-ही कुछ झरता है
होलिका दहन प्रतिदिन हो रहा है आज, जीवन की चिता में मनुज नित जरता है.
10 comments:
बहुत खूब .......होली कि ढेर सारी शुभकामनयें
प्रिय मित्र ,
सादर नमस्कार!
वर्तमान के सन्दर्भ में सच कहती हुई आपकी यह कविता....... कृपया अपना नाम भी लिखियेगा.....
शलभ गुप्ता
My respected "SAMVEDANA KE SWAR" ,
App dono mitron ke Sarthak Vicharon ko mera naman !
बहुत सुंदर कविता ... आज की मानसिकता को उजागर करती ... विचारोत्तेजक
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक बधाईयाँ एवं शुभकामनायें !
samvedana ke swar, jeevan ki her samvedana ko bus yunhi ujaagar karte rahien, isse kamaana ke saath HOLI MUBAARAK !!!
होली के अवसर पर आपका बदला हुआ कलेवर पसंद आया.. पद्मावत की शैली में लिखी कविता
सराहनीय प्रयास है.. स्व. ओम प्रकाश आदित्य का स्मरण हो आया..
शिव प्रिय वर्मा
SHABD AUR SENTIMENTS DIL KO CHOO GAYE, LEKIN HOLI KE RANGO SE NIKLE KUCH ASHAVAADI RANG BHI DIKAHTE TO MAZZA DUGNA HOTA....SAMVEDNAYE KEVAL DUKH JAGANE KE LIYE NA HON,BALKI KUCH MITHA AHSAAS BHI KARAYE.....
SHANT RAKSHIT
buraiyo par bhalaee kee jeet saar tha holee manane ka.......par aaj kee paristhitiyo me ye ek mazak ban kar rah gaya hai.......ab to aae din hee khoon kee holi khel lee jatee hai.........
kratimtaa kee chakachondh me sabhee andhe ho rahe hai........
aisaaholi ka chitran holi to fir ho.........lee.......
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