“तमाम गवाहों के बयानात, वकीलों की दलील और पेश किए गए सबूतों की रोशनी में अदालत इस नतीजे पर पहुँची है कि श्री फलाँ चंद पर लगाए गए तमाम इल्ज़ामात बेबुनियाद हैं, लिहाजा अदालत श्री फलाँ चंद को बाइज़्ज़त बरी करती है और पुलिस को ये हुक़्म देती है कि नए सिरे से खून की तफ़्तीश करे और असली क़ातिल के ख़िलाफ मुक़द्दमा दाख़िल करे.”
पता नहीं कब से ये सारे डायलॉग हम फिल्मों में सुनते आ रहे हैं और शायद वास्तविकता में भी ऐसा ही कुछ हो रहा होगा हमारी अदालतों में. लेकिन एक बात बरसों से सालती आ रही है मन को कि श्री फलाँ चंद तो बरी हो गए पर उस बेचारे मक़्तूल के असली क़ातिल का पता चला क्या?
ऐसा ही एक मुक़दमा सिर उठाए हमारी अदालत में घूम रहा है इन दिनों. मुक़दमा है एक सरकरी मशीन की चोरी का. वो मशीन जिसपर दारोमदार है हमारी जम्हूरियत का. और मुल्ज़िम है एक इंसान हैदराबाद का रहने वाला नाम है श्री हरि प्रसाद. मुल्ज़िम पर ये इल्ज़ाम है कि उसने सरकारी मशीन चुराई है. और ये बात तब सामने आई जब उस बेचारे ने अदालत के सामने यह बताने की कोशिश की कि यह मशीन हमारी जम्हूरियत की इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ करती है या कर सकती है. अब जम्हूरियत की ऐसी की तैसी. इस मुल्क़ में कोई औरत अपने ऊपर हुए ज़िना बल जब्र यानि बलात्कार का मुक़दमा दायर करे तो सारे वकील अपने मोवक्किल को बचाने के लिए उस औरत को बदचलन, बाज़ारू और तवायफ तक कहने से नहीं हिचकते. और अगर उसकी हिमायत करने कोई हमदर्द चश्मदीद बनकर आ गया, तो फिर उसे उसका दलाल बता देंगे.
ऐसे में कौन सुनता उस बेचारे हरि प्रसाद की. बता दिया गया उसे दलाल और डाल दिया गया सींखचों के पीछे. ऐसे आदमी का बाहर रहना जम्हूरियत के लिए एक बहुत बड़ा ख़तरा था और बात सुने बिना क़ैद कर लेना, हमारी अज़ीम रवायत का हिस्सा है.
अगर यह मान भी लिया जाए कि उसने चोरी कि है तो इस चोरी का पता तब लगा जब वो ख़ुद मशीन लेकर अदालत के सामने पहुँचा. उस दिन भी नहीं, उसके कई दिनों बाद. कमाल है जिस शख्स को उस मशीन के हिफ़ाज़त का ज़िम्मा सौंपा गया था, क्या कोई बता सकता है कि वो जनाब इस वक़्त कहाँ ऐश फरमा रहे हैं!!
पहले जब श्री हरि प्रसाद ने वो मशीन जिसे ईवीएम कहते हैं अदालत को दिखाई और बाक़ायदा सबके सामने यह बताना चाहा, कि इस मशीन का ग़लत इस्तेमाल लोकतंत्र के लिए एक ख़तरा साबित हो सकता है और अगर इसका सही इस्तेमाल करना हो तो इसकी ये ख़ामियाँ दूर करनी ही चाहिए. कम से कम सरकार की ये ज़िम्मेवारी बनती है अवाम की तरफ कि वो उनको यह बताए कि हमारे चुनावी सिस्टम बिल्कुल दुरुस्त और बेदाग़ हैं और हर वो सवाल जो इस पर उठाए जा सकते हैं, उनके जवाब देने चाहिए. ऐसा तो कभी नहीं सुना कि बोलने वाले की ज़ुबान काट दी जाए.
अदालत ने कहा कि यह मामला इलेक्शन कमीशन का है और सिरे से ख़ारिज कर दिया. इलेक्शन कमीशन ने कहा कि इस मशीन को खोलना या इसके साथ छेड़छाड़ करना पेटेंट क़ानून के तहत आता है और बगैर किसी एक्स्पर्ट कमेटी की इज़ाज़त के ऐसा करना ग़ैरक़ानूनी है. अब ये सवाल दीगर है कि ऐसी मशीन का साफ्ट्वेयर पर क्या किसी एक्स्पर्ट कमेटी ने सनदी मुहर लगाई थी? अगर हाँ, तो बताया जाये उसका नाम, अता पता और फिर तो सारी बातचीत उन्हीं से करनी मुनासिब होगी.
बहरहाल सवाल अभी भी वहीं क़ायमहै कि आप उस मशीन के साथ जो करें वो ठीक, दूसरा करे तो छेड़छाड़. लिहाज़ा उस बेचारे की बात सुनी ही नहीं गई. और फिर कुछ दिनों बाद उसके ख़िलाफ मशीन चुराने का इल्ज़ाम आयद करके उसे गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन वो अफसर सिर ऊँचा किए घूम रहा है, जिसके पास से वो चोरी हुआ.
पिछले दिनों न्यूज़ एक्स चैनेल ने इसपर एक बहुत अच्छी बहस करवाई, जिसमें शिरकत की तुषार गाँधी, महेश जेठमलानी, जी वी एल नरसिम्ह राव और हरि प्रसाद के एक मित्र ने. सबों ने मिलकर इस बात के ख़िलाफ आवाज़ बुलंद की. बताया कि प्रसाद के साथ ज़यादती हुई है और उससे भी ज़्यादा लोकतंत्र के साथ.
इसी कार्यक्रम में किसी ने आंध्र प्रदेश के तेलांगाना में हुए एक मज़ेदार वाक़ये का ज़िक्र किया. यहाँ लोक सभा चुनावों से नाराज़ और सरकारी रुख़ से खार खाए लोगों ने अपील की कि इस मशीन के ज़रिए वो चुनाव नहीं होने देना चाहते हैं. पर हुक़ूमत आमादा थी कि बस यही मशीनें बुनियाद रखेंगी एक मज़बूत लोकतंत्र की. अवाम ने एक नया तरीका निकाला. काँटे को काँटे से निकालने का. हर कॉन्स्टीच्युएंसी से 64 से ज़्यादा उम्मीदवार खड़े हो गए. नतीजतन, मशीन फ़ेल. क्योंकि मशीन की हद है कि वो 64 से ज़्यादा उम्मीदवारों का हिसाब नहीं रख सकती. हरि प्रसाद के एक दोस्त ने इस कार्यक्रम में कहा कि इस मशीन का यह “जुगाड़ सिस्टम” यानि 64 से ज़्यादा उम्मीदवारों के मैदान में होने पर मशीन को बेकार करने वाला फॉर्मूला आने वाले बिहार, बंगाल और तमिलनाडु के चुनाव में कई जगह इस्तेमाल में लाया जाने वाला है.
सबसे अच्छी बात जो महेश जेठमलानी ने कही वो यह थी कि काग़ज़ी बैलट में बूथ लूटना जैसी घटनाएँ आँखों से दिखती है और अवाम को यह पता चलता है कि फ़लाँ आदमी ने फलाँ जगह, फ़लाँ पार्टी के लिए ग़लत रास्ते अख़्तियार किए, बूथ लूटे या बोगस वोट दिए. लेकिन इस छिपी हुई चोरी को क्या कहेंगे आप जो किसी एक दूर दराज जगह पर बैठकर एक रिमोट कंट्रोल के जरिए की जाए. यह तो मलाई के अंदर ब्लॉटिंग पेपर मिलाकर, फ़ाइव स्टार होटल में एक हेल्दी डिश कहकर परोसने जैसा है.
एक और चैनल “टाइम्स नाउ” की चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता जी ने इस मामले पर किसी भी बहस को लोकतंत्र को बदनाम करने का तमाशा बताया और महेश जेठमलानी को बोलने तक नहीं दिया. इस लिहाज़ से देखे तो हमें “टाइम्स नाउ” पर होने वाली सभी चर्चाओं को तमाशा की कहना होगा.
एक बड़े ही मशहूर चैनेल के भीष्म पितामाह सरीखे जर्नलिस्ट ने भी इस मशीन पर एक प्रोग्राम दिखाया और आख़िर में कहा कि उन्होंने यह मशीन देखी है और उनके हिसाब से वह 100% दुरुस्त और पुख़्ता है. अब कोई उनसे पूछे कि जनाब उसकी तकनीकी बारीकी बताएँगे आप? या हरि प्रसाद के साथ उनको बिठाकर दोनों का इम्तिहान ले लेते हैं.
ख़ैर, एक कहानी सुनिए. एक राजा को सुबह कहीं सफर पर जाते देख उसके पहरेदार ने कहा कि हूज़ूर कल रात ख़्वाब में मैंने देखा है कि रास्ते में कोई पुल टूट गया है और आपकी जान को ख़तरा है. जाँच में उसकी बात पक्की पाई गई. राजा ने उस पहरेदार को जान बचाने के लिए ईनाम दिया और काम पर सोने (सोते हुए सपना देखा था उसने) की वज़ह से नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया.
अगर ये वाक़या आजकल का होता तो वज़ीरों की सलाह पर राजा ने उस शख़्स को क़ैद करने का हुक़्म दे दिया होता. उसपर इल्ज़ाम लगता कि वो नौकरी के वक़्त सो रहा था और उसके रिश्तेदार राजा के क़त्ल की साज़िश कर रहे थे. कहा जाता कि बात खुल चुकी थी, इसलिए पहरेदार ने क़िस्सा बनाया कि उसे ख़्वाब में वो सब दिखाई दिया जिसको बताकर वो राजा की जान बचाने का नाटक कर रहा था. और बिना उसकी दलील सुने और बिना तफ्तीश के बेचारा उमर क़ैद झेल रहा होता.